लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


लेकिन वह वासना बन्दी वहाँ से हिला नहीं। उसकी आरज़ुओं ने एक क़दम और आगे बढ़ाया। मेरी इस रामकहानी का हासिल क्या? अगर सिर्फ़ दर्दे दिल ही सुनाना था, तो किसी तसवीर को सुना सकता था। वह तसवीर इससे ज़्यादा ध्यान से और ख़ामोशी से मेरे ग़म की दास्तान सुनती। काश, मैं भी इस रूप की रानी की मीठी आवाज़ सुनता, वह भी मुझसे कुछ अपने दिल का हाल कहती, मुझे मालूम होता कि मेरे इस दर्द के किस्से का उसके दिल पर क्या असर हुआ। काश, मुझे मालूम होता कि जिस आग में मैं फुँका जा रहा हूँ, कुछ उसकी आँच उधर भी पहुँचती है या नहीं। कौन जाने यह सच हो कि मुहब्बत पहले माशूक के दिल में पैदा होती है। ऐसा न होता तो वह सब्र को तोड़ने वाली निगाह मुझ पर पड़ती ही क्यों? आह, इस हुस्न की देवी की बातों में कितना लुत्फ़ आयेगा। बुलबुल का गाना सभी सुनते हैं पर फूल का गाना किसने सुना है। काश मैं वह गाना सुन सकता, उसकी आवाज़ कितनी दिलकश होगी, कितनी पाकीज़ा, कितनी नूरानी, अमृत में डूबी हुई और जो कहीं वह भी मुझसे प्यार करती हो तो फिर मुझसे ज़्यादा खुशनसीब दुनिया में और कौन होगा?

इस ख़याल से क़ासिम का दिल उछलने लगा। रगों में एक हरकत-सी महसूस हुई। इसके बावजूद कि बाँदियों के जग जाने और मसरूर की वापसी का धड़का लगा हुआ था, आपसी बातचीत की इच्छा ने उसे अधीर कर दिया, बोला—हुस्न की मलका, यह जख्म़ी दिल आपकी इनायत की नज़र की मुस्तहक़ है। कुछ उसके हाल पर रहम न कीजिएगा?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book