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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


यह कहकर उसने लुटिया उठाई, डण्डा सम्हाला और दर्दभरे दिल से एक तरफ़ को चल दिया।

उस वक़्त इन्दिरा अपने झरोखे पर बैठी हुई इन दोनों की बातें सुन रही थी। कैसा संयोग है कि स्त्री को स्वर्ग की सब सिद्धियाँ प्राप्त हैं और उसका पति आवारों की तरह मारा-मारा फिर रहा है। उसे रात काटने का ठिकाना नहीं।

मगनदास निराश विचारों में डूबा हुआ शहर से बाहर निकल आया और एक सराय में ठहरा जो सिर्फ़ इसलिए मशहूर थी, कि वहाँ शराब की एक दुकान थी। यहाँ आस-पास से मज़दूर लोग आ-आकर अपने दुख को भुलाया करते थे। जो भूले-भटके मुसाफिर यहाँ ठहरते, उन्हें होशियारी और चौकसी का व्यावहारिक पाठ मिल जाता था। मगनदास थका-माँदा था ही, एक पेड़ के नीचे चादर बिछाकर सो रहा और जब सुबह को नींद खुली तो उसे किसी पीर-औलिया के ज्ञान की सजीव दीक्षा का चमत्कार दिखाई पड़ा जिसकी पहली मंजिल वैराग्य है। उसकी छोटी-सी पोटली, जिसमें दो-एक कपड़े और थोड़ा-सा रास्ते का खाना और लुटिया-डोर बंधी हुई थी, ग़ायब हो गई। उन कपड़ों को छोड़कर जो उसके बदन पर थे अब उसके पास कुछ भी न था और भूख, जो कंगाली में और भी तेज़ हो जाती है, उसे बेचैन कर रही थी। मगर दृढ़ स्वभाव का आदमी था, उसने क़िस्मत का रोना नहीं रोया, किसी तरह गुजर करने की तदबीरें सोचने लगा। लिखने और गणित में उसे अच्छा अभ्यास था मगर इस हैसियत में उससे फ़ायदा उठाना असम्भव था। उसने संगीत का बहुत अभ्यास किया था। किसी रसिक रईस के दरबार में उसकी क़द्र हो सकती थी। मगर उसके पुरुषोचित अभिमान ने इस पेशे को अख़्तियार करने इजाज़त न दी। हाँ, वह आला दर्जे का घुड़सवार था और यह फ़न मज़े में पूरी शान के साथ उसकी रोज़ी का साधन बन सकता था। यह पक्का इरादा करके उसने हिम्मत से क़दम आगे बढ़ाये। ऊपर से देखने पर यह बात यक़ीन के क़ाबिल नहीं मालूम होती मगर वह अपना बोझ हलका हो जाने से इस वक़्त बहुत उदास नहीं था। मर्दाना हिम्मत का आदमी ऐसी मुसीबतों को उसी निगाह से देखता है, जिससे एक होशियार विद्यार्थी परीक्षा के प्रश्नों को देखता है। उसे अपनी हिम्मत आज़माने का, एक मुश्किल से जूझने का मौक़ा मिल जाता है। उसकी हिम्मत अनजाने ही मज़बूत हो जाती है। अकसर ऐसे मार्के मर्दाना हौसले के लिए प्रेरणा का काम देते हैं। मगनदास इस जोश से क़दम बढ़ाता चला जाता था कि जैसे कामयाबी की मंजिल सामने नज़र आ रही है। मगर शायद वहाँ के घोड़ों ने शरारत और बिगड़ैलपन से तौबा कर ली थी या वे स्वाभाविक रुप बहुत मजे़ मे धीमे-धीमे चलने वाले थे। वह जिस गाँव में जाता निराशा को उकसाने वाला जवाब पाता आख़िरकार शाम के वक़्त जब सूरज अपनी आख़िरी मंजिल पर जा पहुँचा था, उसकी कठिन मंजिल तमाम हुई। नागरघाट के ठाकुर अटलसिंह ने उसकी जीविका की चिन्ता को समाप्त किया।

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