कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
नमकख़ोर सरदार की फ़ौज रोज़-ब-रोज़ बढ़ने लगी। पहले तो वह अँधेरे के पर्दे में शाही ख़जानों पर हाथ बढ़ाता रहा, धीरे-धीरे एक बाक़ायदा फ़ौज तैयार हो गयी। यहाँ तक सरदार को शाही फ़ौजों के मुक़ाबले में अपनी तलवार आजमाने का हौसला हुआ, और पहली ही लड़ाई में चौबीस क़िले इस नयी फ़ौज के हाथ आ गये। शाही फ़ौज ने लड़ने में ज़रा भी कसर न की मगर वह ताक़त, वह जोश, वह जज़्बा जो सरदार नमकख़ोर और उसके दोस्तों के दिलों को हिम्मत के मैदान में आगे बढ़ाता रहता था किशवरकुशा दोयम के सिपाहियों में ग़ायब था। लड़ाई के कला-कौशल, हथियारों की खूबी और ऊपर दिखायी पड़ने वाली शान-शौकत के लिहाज़ से दोनों फ़ौजों का कोई मुक़ाबला न था। बादशाह के सिपाही भी लहीम-शहीम, लम्बे-तड़ंगे और आज़माये हुए थे। उनके साज-सामान और तौर-तरीक़े देखने वालों के दिलों पर एक डर-सा छा जाता था और वहम भी यह गुमान न कर सकता था कि इस ज़बर्दस्त जमात के मुक़ाबले में निहत्थी-सी, अधनंगी बेक़ायदा सरदारी फ़ौज एक पल के लिए भी पैर जमा सकेगी। मगर जिस वक़्त ‘मारो’ की दिल बढ़ाने वाली पुकार हवा में गूँजी एक अजीबोग़रीब नज़्जारा सामने आया। सरदार के सिपाही तो नारे मारकर आगे धावा करते थे और बादशाह की फ़ौज भागने की राह पर दबी हुई निगाहें डालती थी। दम की दम में मोर्चे गुबार की तरह फट गये और जब मस्क़ात के मज़बूत क़िले में सरदार नमकख़ोर शाही क़िलेदार की मसनद पर अमीराना ठाट-बाट में बैठा और अपनी फ़ौज की कारगुजारियों और जाँबाजियों का इनाम देने के लिए एक तश्त में सोने की तमग़ मँगवाकर रक्खे तो सबसे पहले जिस सिपाही का नाम पुकारा गया वह नौजवान मसऊद था।
मसऊद पर इस वक़्त उसकी फौज़ घमंड करती थी। लड़ाई के मैदान में सबसे पहले उसी की तलवार चमकती थी और धावे के वक़्त सबसे पहले उसी के क़दम उठते थे। दुश्मन के मोर्चों में ऐसा बेधड़क घुसता था जैसे आसमान में चमकता हुआ लाल तारा। उसकी तलवार के वार क़यामत थे और उसके तीर का निशाना मौत का सन्देश।
मगर टेढ़ी चाल की तक़दीर से उसका यह प्रताप, यह प्रतिष्ठा न देखी गयी। कुछ थोड़े से आज़माये हुए अफसर जिनके तेग़ों की चमक मसऊद के तेग़ के सामने मन्द पड़ गयी थी, उससे खार खाने लगे और उसे मिटा देने की तदबीरें सोचने लगे। संयोग से उन्हें मौका भी जल्द हाथ आ गया।
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