कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
इस पुरज़ोश तक़रीर ने सरदारों के हौसले उभार दिये। उनकी आँखें लाल हो गयीं, तलवारें पहलू बदलने लगीं और क़दम बरबस लड़ाई के मैदान की तरफ़ बढ़े। शेख़ मखमूर ने तब फ़कीरी बाना उतार फेंका, फ़कीरी प्याले को सलाम किया और हाथों में वही तलवार और ढाल लेकर जो किसी वक़्त मसऊद से छीने गये थे, सरदार नमकख़ोर के साथ-साथ सिपाहियों और अफ़सरों का दिल बढ़ाते शेरों की तरह बिफरता हुआ चला। आधी रात का वक़्त था, अमीर के सिपाही अभी मंज़िले मारे चले आते थे। बेचारे दम भी न लेने पाये थे कि एकाएक सरदार नमकख़ोर के आ पहुँचने की ख़बर पायी। होश उड़ गये और हिम्म्तें टूट गयीं। मगर अमीर शेर की तरह गरज कर ख़ेमे से बाहर आया और दम के दम में अपनी सारी फ़ौज दुश्मन के मुकाबले में क़तार बाँधकर खड़ी कर दी कि जैसे एक माली था कि आया और इधर-उधर बिखरे हुए फूलों को एक गुलदस्ते में सजा गया।
दोनों फ़ौजें काले-काले पहाड़ों की तरह आमने-सामने खड़ी हैं। और तोपों का आग बरसाना ज्वालामुखी का दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। उनकी घनगरज आवाज़ से बला का शोर मच रहा था। यह पहाड़ धीरे-धीरे आगे बढ़ते गये। यकायक वह टकराये और कुछ इस ज़ोर से टकराये कि ज़मीन काँप उठी और घमासान की लड़ाई शुरू हो गयी। मसऊद का तेग़ा इस वक़्त एक बला हो रहा था, जिधर पहुँचता लाशों के ढेर लग जाते और सैकड़ों सर उस पर भेंट चढ़ जाते।
पौ फ़टे तक तेग़े यों ही खड़का किये और यों ही खून का दरिया बहता रहा। जब दिन निकला तो लड़ाई का मैदान मौत का बाजार हो रहा था। जिधर निगाह उठती थी, मरे हुओं के सर और हाथ-पैर लहू में तैरते दिखायी देते थे। यकायक शेख़ मख़मूर की कमान से एक तीर बिजली बनकर निकला और अमीर पुरतदबीर की जान के घोंसले पर गिरा और उसके गिरते ही शाही फ़ौज भाग निकली और सरदारी फ़ौज फ़तेह का झण्डा उठाये राजधानी की तरफ़ बढ़ी।
जब यह जीत की लहर-जैसी फ़ौज शहर की दीवार के अन्दर दाख़िल हुई तो शहर के मर्द और औरत, जो बड़ी मुद्दत से गुलामी की सख्तियाँ झेल रहे थे उसकी अगवानी के लिए निकल पड़े। सारा शहर उमड़ आया। लोग सिपाहियों को गले लगाते थे और उन पर फूलों की बरखा करते थे कि जैसे बुलबुलें थीं जो बहेलिये के पंजे से रिहाई पाने पर बाग़ में फूलों को चूम रही थीं। लोग शेख़ मख़मूर के पैरों की धूल माथे से लगाते थे और नमकख़ोर के पैरों पर खुशी के आँसू बहाते थे।
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