कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
एक जगह कोई अफ़ीमची साहब तमाशा देखने आये हुए थे। झुकी हुई कमर, पोपला मुँह, छिदरे-छिदरे सर के बाल और दाढ़ी के बाल मेहंदी से रँगे हुए थे। आँखों में सुरमा भी था। आप बड़े गौर से सैर करने में लगे थे। इतने में एक हलवाई सर पर खोमचा रक्खे हुए आया और बोला—खाँ साहब, जुमेरात की गुलाबवाली रेवड़ियाँ हैं। आज पैसे की आध पाव लगा दीं, खा लीजिए वर्ना पछताइएगा। अफ़ीमची साहब ने जेब में हाथ डाला मगर पैसे न थे। हाथ मल कर रह गये, मुँह में पानी भर आया। गुलाबवाली रेवड़ियाँ और पैसे में आध पाव! न हुए पैसे नहीं तो सेरोंतुला लेते। हलवाई ताड़ गया, बोला—आप पैसों की कुछ फ़िक्र न करें, पैसे फिर मिल जायँगे। आप कोई ऐसे–वैसे आदमी थोड़े ही हैं। अफ़ीमची साहब की बाछें खिल गयीं। रूह फड़क उठी। आपने पाव भर रेवड़ियाँ लीं और जी में कहा—अब पैसा देनेवाले पर लानत है। घर से निकलूँगा ही नहीं, तो पैसे क्या लोगे? अपने रुमाल में रेवड़ियाँ लीं। आशिक के दिल में सब्र कहाँ मगर ज्योंही पहली रेवड़ी जबान पर रक्खी कि तिलमिला गए। पागल कुत्ते की तरह पानी की तलाश में इधर-उधर दौड़ने लगे। आँख और नाक से पानी बहने लगा। आधा मुँह खोलकर ठंडी हवा से जबान की जलन बुझाने लगे। जब होश ठीक हुए तो हलवाई को हजारों गालियाँ सुनायीं, इस पर भी लोग ख़ूब हँसे। खुशी के मौकों पर ऐसी शरारतें अक्सर हुआ करती हैं और इन्हें लोग मुआफ़ी के क़ाबिल समझते हैं क्योंकि वह खोलती हुई हाँडी के उबाल हैं।
रात के नौ बजे संगीतशाला में जमघट हुआ। सारा महल नीचे से ऊपर तक रंग-बिरंगी हाँडियों और फ़ानूसों से जगमगा रहा था। अन्दर झाड़ों की बहार थी। एक बाकमाल कारीगर ने रंगशाला के बीचोंबीच अधर में लटका हुआ एक फ़व्वारा लगाया था जिसके सूराखों से खस और केवड़ा, गुलाब और सन्दल का अरक़ हलकी फुहारों में बरस रहा था। महफ़िल में अम्बर की बौछार करनेवाली तरावट फैली हुई थी। खुशी अपनी सखियों-सहेलियों के साथ खुशियाँ मना रही थी।
दस बजे महाराजा रनजीतसिंह तशरीफ़ लाये। उनके बदन पर तज़ेब की एक सफेद अचकन थी और सिर पर तिरछी पगड़ी बँधी हुई थी। जिस तरह सूरज क्षितिज की रंगीनियों से पाक रहकर अपनी पूरी रोशनी दिखा सकता है उसी तरह हीरे और जवाहरात, दीवा* और हरीर* (*रेशमी कपड़ों के नाम।) की पुरतकल्लुफ़ सजावट से मुक्त रहकर महाराजा रनजीतसिंह का प्रताप पूरी तेजी के साथ चमक रहा था।
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