लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ

शेख़ मख़मूर

मुल्के जन्नतनिशाँ के इतिहास में बहुत अँधेरा वक़्त था जब शाह किशवर की फ़तहों की बाढ़ बड़े ज़ोर-शोर के साथ उस पर आयी। सारा देश तबाह हो गया। आज़ादी की इमारतें ढह गयीं और जानोमाल के लाले पड़ गये। शाह बामुराद खूब जी तोड़कर लड़ा, खूब बहादुरी का सबूत दिया और अपने ख़ानदान के तीन लाख सूरमाओं को अपने देश पर चढ़ा दिया मगर विजेता की पत्थर काट देने वाली तलवार के मुक़ाबले में उसकी यह मर्दाना जाँबाज़ियाँ बेअसर साबित हुईं। मुल्क़ पर शाह किशवरकुशा की हुक़ूमत का सिक्का जम गया और शाह बामुराद अकेला और तनहा बेयारो मददगार अपना सब कुछ आज़ादी के नाम पर कुर्बान करके एक झोंपड़े में ज़िन्दगी बसर करने लगा।

यह झोंपड़ा पहाड़ी इलाके में था। आस-पास जंगली क़ौमें आबाद थीं और दूर-दूर तक पहाड़ों के सिलसिले नज़र आते थे। इस सुनसान जगह में शाह बामुराद मुसीबत के दिन काटने लगा, दुनिया में अब उसका कोई दोस्त न था। वह दिन भर आबादी से दूर एक चट्टान पर अपने ख़याल में मस्त बैठा रहता था। लोग समझते थे कि यह कोई ब्रह्म ज्ञान के नशे में चूर सूफ़ी है। शाह बामुराद को यों बसर करते एक ज़माना बीत गया और जवानी की बिदाई और बुढ़ापे के स्वागत की तैयारियाँ होने लगीं।

तब एक रोज़ शाह बामुराद बस्ती के सरदार के पास गया और उससे कहा—मैं अपनी शादी करना चाहता हूँ। उसकी तरफ़ से पैगाम सुनकर वह अचम्भे में आ गया मगर चूँकि दिल में शाह साहब के कमाल और फ़क़ीरी में गहरा विश्वास रखता था, पलटकर जवाब न दे सका और अपनी कुँवारी नौजवान बेटी उनको भेंट की। तीसरे साल इस युवती की कामानओं की बाटिका में एक नौरस पौधा उगा। शाह साहब खुशी के मारे जामे में फूले न समाये। बच्चे को गोद में उठा लिया और हैरत में डूबी हुई माँ के सामने जोश-भरे लहजे में बोले—‘खुदा का शुक्र है कि मुल्के जन्नतनिशाँ का वारिस पैदा हुआ।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book