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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


इसके बाद कई साल बीत गये। दुनिया में कितनी ही क्रान्तियाँ हो गई। रूस की जारशाही मिट गई, जर्मन को कैसर दुनिया के स्टेज से हमेशा के लिए बिदा हो गया, प्रजातंत्र की एक शताब्दी में जितनी उन्नति हुई थी, उतनी इन थोड़े-से सालों में हो गई। मेरे जीवन में भी कितने ही परिर्वतन हुए। एक टाँग युद्ध के देवता की भेंट हो गई, मामूली सिपाही से लेफ्टिनेण्ट हो गया।

एक दिन फिर ऐसी चमक और गरज की रात थी। मैं क्वार्टर मैं बैठा हुआ कप्तान नाक्स और लेफ़्टिनेण्ट डाक्टर चन्द्रसिंह से इसी घटना की चर्चा कर रहा था जो दस-बारह साल पहले हुई थी, सिर्फ़ लुईसा का नाम छिपा रखा था। कप्तान नाक्स को इस चर्चा में असाधरण आनन्द आ रहा था। वह बार-बार एक-एक बात पूछता और घटना क्रम मिलाने के लिए दुबारा पूछता था। जब मैंने आख़िर में कहा कि उस दिन भी ऐसी ही अंधेरी रात थी, ऐसी ही मूसलाधार बारिश हो रही थी और यही वक़्त था तो नाक्स अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और बहुत उद्विग्न होकर बोला-क्या उस औरत का नाम लुईसा तो नहीं था?

मैंन आश्चर्य से कहा, ‘आपको उसका नाम कैसे मालूम हुआ? मैंने तो नहीं बतलाया’, पर नाक्स की आँखों में आँसू भर आये। सिसकियां लेकर बोले– यह सब आपको अभी मालूम हो जाएगा। पहले यह बतलाइए कि आपका नाम श्रीनाथ सिंह है या चौधरी?

मैंने कहा– मेरा पूरा नाम श्रीनाथ सिंह चौधरी है। अब लोग मुझे सिर्फ़ चौधरी कहते हैं। लेकिन उस वक़्त चौधरी के नाम से मुझे कोई न जानता था। लोग श्रीनाथ कहते थे।

कप्तान नाक्स अपनी कुर्सी खींचकर मेरे पास आ गये और बोले– तब तो आप मेरे पुराने दोस्त निकले। मुझे अब तब नाम के बदल जाने से धोखा हो रहा था, वर्ना आपका नाम तो मुझे ख़ूब याद है। हाँ, ऐसा याद है कि शायद मरते दम तक भी न भूलूँ क्योंकि यह उसकी आख़िरी वसीयत है।

यह कहते-कहते नाक्स ख़ामोश हो गये और आँखें बन्द करके सर मेज पर रख लिया। मेरा आश्चर्य हर क्षण बढ़ता जा रहा था और लेफ़्टिनेण्ट डा० चन्द्रसिंह भी सवाल-भरी नज़रों से एक बार मेरी तरफ़ और दूसरी बार कप्तान नाक्स के चेहरे की तरफ़ देख रहे थे।

दो मिनट तक ख़ामोश रहने के बाद कप्तान नाक्स ने सर उठाया और एक लम्बी सांस लेकर बोले– क्यों लेफ़्टिनेण्ट चौधरी, तुम्हें याद है एक बार एक अंग्रेज़ सिपाही ने तुम्हें बुरी गाली दी थी?

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