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कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
यह कहते-कहते ठाकुर ने कमर से छुरा निकाल लिया। वह अपनी छाती में छुरा घोंपकर कालिमा को रक्त से धोना ही चाहते थे कि चौधरी साहब ने लपककर छुरा उनके हाथों से छीन लिया और बोले– क्या करते हो, होश संभालो। ये तक़दीर के करिश्मे हैं, इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं, खुदा को जो मंजूर था, वह हुआ। मैं अगर खुद शैतान के बहकावे में आकर मन्दिर में घुसता और देवता की तौहीन करता, और तुम मुझे पहचानकर भी कत्ल कर देते तो मैं अपना ख़ून माफ़ कर देता। किसी के दीन की तौहीन करने से बड़ा और कोई गुनाह नहीं हैं। गो इस वक़्त मेरा कलेजा फटा जाता है, और यह सदमा मेरी जान ही लेकर छोड़ेगा, पर खुदा गवाह है कि मुझे तुमसे ज़रा भी मलाल नहीं है। तुम्हारी जगह मैं होता, तो मैं भी यही करता, चाहे मेरे मालिक का बेटा ही क्यों न होता। घरवाले मुझे तानो से छेदेंगे, लड़की रो-रोकर मुझसे ख़ून का बदला मांगेंगी, सारे मुसलमान मेरे ख़ून के प्यासे हो जाएँगे, मैं काफ़िर और बेदीन कहाँ जाऊँगा, शायद कोई दीन का पक्का नौजवान मुझे कत्ल करने पर भी तैयार हो जाय, लेकिन मैं हक से मुँह न मोडूँगा। अंधेरी रात है, इसी दम यहाँ से भाग जाओ, और मेरे इलाके में किसी छावनी में छिप जाओ। वह देखो, कई मुसलमान चले आ रहे हैं– मेरे घरवाले भी हैं– भागो, भागो!
साल-भर भजनसिंह चौधरी साहब के इलाके में छिपा रहा। एक ओर मुसलमान लोग उसकी टोह में लगे रहते थे, दूसरी ओर पुलिस। लेकिन चौधरी उसे हमेशा छिपाते रहते थे। अपने समाज के ताने सहे, अपने घरवालों का तिरस्कार सहा, पुलिस के वार सहे, मुल्लाओं की धमकियाँ सहीं, पर भजनसिंह की ख़बर किसी को कानों-कान न होने दी। ऐसे वफादार स्वामिभक्त सेवक को वह जीते जी निर्दय क़ानून के पंजे में न देना चाहते थे। उनके इलाके की छावनियों में कई बार तलाशियाँ हुईं, मुल्लाओं ने घर के नौकरों, मामाओं, लौंडियों को मिलाया, लेकिन चौधरी ने ठाकुर को अपने एहसानों की भाँति छिपाये रक्खा।
लेकिन ठाकुर को अपने प्राणों की रक्षा के लिए चौधरी साहब को संकट में पड़े देखकर असह्य वेदना होती थी। उसके जी में बार-बार आता था, चलकर मालिक से कह दूँ– मुझे पुलिस के हवाले कर दीजिए। लेकिन चौधरी साहब बार-बार उसे छिपे रहने की ताकीद करते रहते थे।
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