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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मकान पर आकर मैंने चटपट अपनी किताबों की पोटली उठायी, अपना हलका लिहाफ़ कंधे पर रखा और स्टेशन के लिए चल पड़ा। गाड़ी ५ बजकर ५ मिनट पर जाती थी। स्कूल की घड़ी हाज़िरी के वक़्त हमेशा आध घण्टा तेज और छुट्टी के वक़्त आधा घण्टा सुस्त रहती थी। चार बजे स्कूल बन्द हुआ था। मेरे ख़याल में स्टेशन पहुँचने के लिए काफ़ी वक़्त था। फिर भी मुसाफिरों को गाड़ी की तरफ़ से आम तौर पर जो अन्देशा लगा रहता है, और जो घड़ी हाथ में होने पर भी और गाड़ी का वक़्त ठीक मालूम होने पर भी दूर से किसी गाड़ी की गड़गड़ाहट या सीटी सुनकर कदमों को तेज़ और दिल को परेशान कर दिया करता है, वह मुझे भी लगा हुआ था। किताबों की पोटली भारी थी, उस पर कंधे पर लिहाफ़, बार-बार हाथ बदलता और लपका चला जाता था। यहाँ तक कि स्टेशन कोई दो फ़र्लांग से नज़र आया। सिगनल डाउन था। मेरी हिम्मत भी उस सिगनल की तरह डाउन हो गयी, उम्र के तक़ाजे से एक सौ क़दम दौड़ा ज़रूर मगर यह निराशा की हिम्मत थी। मेरे देखते-देखते गाड़ी आयी, एक मिनट ठहरी और रवाना हो गयी। स्कूल की घड़ी यक़ीनन आज और दिनों से भी ज़्यादा सुस्त थी।

अब स्टेशन पर जाना बेकार था। दूसरी गाड़ी ग्यारह बजे रात को आयगी, मेरे घरवाले स्टेशन पर कोई बारह बजे पहुँचेगी और वहाँ से मकान पर जाते-जाते एक बज जायगा। इस सन्नाटे में रास्ता चलना भी एक मोर्चा था जिसे जीतने की मुझमें हिम्मत न थी। जी में तो आया कि चलकर हेडमास्टर को आड़े हाथों लूं मगर जब्त किया और पैदल चलने के लिए तैयार हो गया। कुल बारह मील ही तो है, अगर दो मील फ़ी घण्टा भी चलूँ तो छः घण्टों में घर पहुँच सकता हूँ। अभी पाँच बजे हैं, जरा क़दम बढ़ाता जाऊँ तो दस बजे यक़ीनन पहुँच जाऊँगा। अम्माँ और मुन्नू मेरा इन्तज़ार कर रहे होंगे, पहुँचते ही गरम-गरम खाना मिलेगा। कोल्हाड़े में गुड़ पक रहा होगा, वहाँ से गरम-गरम रस पीने को आ जायगा और जब लोग सुनेंगे कि मैं इतनी दूर पैदल आया हूँ तो उन्हें कितना अचरज होगा! मैंने फ़ौरन गंगा की तरफ़ पैर बढ़ाया। यह क़स्बा नदी के किनारे था और मेरे गाँव की सड़क नदी के उस पार से थी। मुझे इस रास्ते से जाने का कभी संयोग न हुआ था, मगर इतना सुना था कि कच्ची सड़क सीधी चली जाती है, परेशानी की कोई बात न थी, दस मिनट में नाव पार पहुँच जायगी और बस फ़र्राटे भरता चल दूँगा। बारह मील कहने को तो होते हैं, हैं तो कुल छः कोस।

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