लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

325 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


आहा हा, यह गुड़ की खुशबू कहाँ से आयी! कहीं ताजा गुड़ पक रहा है। कोई गाँव क़रीब ही होगा। हाँ, वह आमों के झुरमुट में रोशनी नज़र आ रही है। लेकिन वहाँ पैसे-दो-पैसे का गुड़ बेचेगा और यों मुझसे मांगा न जाएगा, मालूम नहीं लोग क्या समझें। आगे बढ़ता हूँ, मगर ज़बान से लार टपक रही है गुड़ से मुझे बड़ा प्रेम है। जब कभी किसी चीज़ की दुकान खोलने की सोचता था तो वह हलवाई की दुकान होती थी। बिक्री हो या न हो, मिठाइयाँ तो खाने को मिलेंगी। हलवाइयों को देखो, मारे मोटापे के हिल नहीं सकते। लेकिन वह बेवकूफ होते हैं, आरामतलबी के मारे तोंद निकाल लेते हैं, मैं कसरत करता रहूँगा। मगर गुड़ की वह धीरज की परीक्षा लेनेवाली, भूख को तेज़ करनेवाली ख़ुशबू बराबर आ रही है। मुझे वह घटना याद आती है, जब अम्माँ तीन महीने के लिए अपने मैके या मेरी ननिहाल गयी थीं और मैंने तीन महीने में एक मन गुड़ का सफ़ाया कर दिया था। यही गुड़ के दिन थे। नाना बीमार थे, अम्माँ को बुला भेजा था। मेरा इम्तहान पास था इसलिए मैं उनके साथ न जा सका, मुन्नू को लेती गयीं। जाते वक़्त उन्होंने एक मन गुड़ लेकर उस मटके में रखा और उसके मुँह पर सकोरा रखकर मिट्टी से बन्द कर दिया। मुझे सख़्त ताकीद कर दी कि मटका न खोलना। मेरे लिए थोड़ा-सा गुड़ एक हाँडी में रख दिया था। वह हाँडी मैंने एक हफ़्ते में सफाचट कर दी सुबह को दूध के साथ गुड़, दोपहर को रोटियों के साथ गुड़, तीसरे पहर दानों के साथ गुड़, रात को फिर दूध के साथ गुड़। यहाँ तक जायज़ खर्च था जिस पर अम्माँ को भी कोई एतराज न हो सकता। मगर स्कूल से बार-बार पानी पीने के बहाने घर आता और दो-एक पिण्डियां निकालकर खा लेता। उसकी बजट में कहाँ गुंजाइश थी। और मुझे गुड़ का कुछ ऐसा चस्का पड़ गया कि हर वक़्त वही नशा सवार रहता। मेरा घर में आना गुड़ के सिर शामत आना था। एक हफ़्ते में हाँडी ने जवाब दे दिया। मगर मटका खोलने की सख्त मनाही थी और अम्माँ के घर आने में अभी पौने तीन महीने ब़ाकी थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book