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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


श्यामा दोनों हाथों से स्टूल पकड़े हुए थी। स्टूल की चारों टागें बराबर न होने के कारण जिस तरफ़ ज़्यादा दबाव पाता था, जरा-सा हिल जाता था। उस वक़्त केशव को कितनी तकलीफ़ उठानी पड़ती थी। यह उसी का दिल जानता था। दोनों हाथों से कार्निस पकड़ लेता और श्यामा को दबी आवाज़ से डांटता– अच्छी तरह पकड़, वर्ना उतरकर बहुत मारूँगा। मगर बेचारी श्यामा का दिल तो ऊपर कार्निस पर था। बार-बार उसका ध्यान उधर चला जाता और हाथ ढीले पड़ जाते।

केशव ने ज्यों ही कार्निस पर हाथ रक्खा, दोनों चिड़ियाँ उड़ गयीं। केशव ने देखा, कार्निस पर थोड़े-से तिनके बिछे हुए हैं, और उस पर तीन अण्डे पड़े हैं। जैसे घोंसले उसने पेड़ों पर देखे थे, वैसा कोई घोंसला नहीं है। श्यामा ने नीचे से पूछा– कै बच्चे हैं भइया?

केशव– तीन अण्डे हैं, अभी बच्चे नहीं निकले।

श्यामा– जरा हमें दिखा दो भइया, कितने बड़े हैं?

केशव– दिखा दूँगा, पहले जरा चिथड़े ले आ, नीचे बिछा

दूँ। बेचारे अंडे तिनकों पर पड़े हैं।

श्यामा दौड़कर अपनी पुरानी धोती फाड़कर एक टुकड़ा लायी। केशव ने झुककर कपड़ा ले लिया, उसके कई तह करके उसने एक गद्दी बनायी और उसे तिनकों पर बिछाकर तीनों अण्डे उस पर धीरे से रख दिये।

श्यामा ने फिर कहा– हमको भी दिखा दो भइया।

केशव– दिखा दूँगा, पहले जरा वह टोकरी दे दो, ऊपर छाया कर दूँ।

श्यामा ने टोकरी नीचे से थमा दी और बोली– अब तुम उतर आओ, मैं भी तो देखूँ।

केशव ने टोकरी को एक टहनी से टिकाकर कहा– जा, दाना और पानी की प्याली ले आ, मैं उतर आऊँ तो दिखा दूँगा।

श्यामा प्याली और चावल भी लायी। केशव ने टोकरी के नीचे दोनों चीजें रख दीं और आहिस्ता से उतर आया।

श्यामा ने गिड़गिड़ा कर कहा– अब हमको भी चढ़ा दो भइया।

केशव– तू गिर पड़ेगी।

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