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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


माया ने पूछा– आप कौन है?

तिलोत्तमा ने हंसकर कहा– तुम मुझे नहीं पहचानतीं?

मैं ही तुम्हारा मनमोहन हूँ जो दुनिया में मिस्टर व्यास के नाम से मशहूर था।

‘आप ख़ूब आये। मैं आपसे खूनी का नाम पूछना चाहती हूँ।’

‘उसका नाम है, ईश्वरदास।’

‘कहाँ रहता है?’

‘शाहजहाँपुर।’

माया ने मुहल्ले का नाम, मकान का नम्बर, सूरत-शक्ल, सब कुछ विस्तार के साथ पूछा और काग़ज़ पर नोट कर लिया। तिलोत्तमा जरा देर में उठ बैठी। जब कमरे में फिर रोशनी हुई तो माया का मुरझाया हुआ चेहरा विजय की प्रसन्नता से चमक रहा था। उसके शरीर में एक नया जोश लहरें मार रहा था कि जैसे प्यास से मरते हुए मुसाफ़िर को पानी मिल गया हो।

उसी रात को माया ने लाहौर से शाहजहाँपुर आने का इरादा किया।

रात का वक़्त। पंजाब मेल बड़ी तेजी से अंधेरे को चीरती-हुई चली जा रही थी। माया एक सेकेण्ड क्लास के कमरे में बैठी सोच रही थी कि शाहजहाँपुर में कहाँ ठहरेगी, कैसे ईश्वरदास का मकान तलाश करेगी और कैसे उससे ख़ून का बदला लेगी। उसके बगल में तिलोत्तमा बेख़बर सो रही थी सामने ऊपर के बर्थ पर एक आदमी नींद में गाफ़िल पड़ा हुआ था।

यकायक गाड़ी का कमरा खुला और दो आदमी कोट-पतलून पहने हुए कमरे में दाखिल हुए। दोनो अंग्रेज़ थे। एक माया की तरफ़ बैठा और दूसरा दूसरी तरफ़। माया सिमटकर बैठ गयी। इन आदमियों का यों बैठना उसे बहुत बुरा मालूम हुआ। वह कहना चाहती थी, आप लोग दूसरी तरफ़ बैठें, पर वही औरत जो ख़ून का बदला लेने जा रही थी, सामने यह खतरा देखकर कांप उठी। वह दोनों शैतान उसे सिमटते देखकर और भी करीब आ गये। माया अब वहाँ न बैठी रह सकी। वह उठकर दूसरे बर्थ पर जाना चाहती थी कि उनमें से एक ने उसका हाथ पकड़ लिया। माया ने जोर से हाथ छुड़ाने की कोशिश करके कहा– तुम्हारी शामत तो नहीं आयी है, छोड़ दो मेरा हाथ, सुअर?

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