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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ



उसने कहा था

श्री चंद्रधर शर्मा गुलेरी

[ आपका जन्म काँगड़ा प्रान्त के गुलेर नामक गाँव में हुआ था। आप संस्कृत, प्राकृत और अँगरेजी के अच्छे विद्वान थे। भाषा-शास्त्र पर खास अधिकार था। आप हिंदू विश्वविद्यालय में प्राच्य शिक्षा-विभाग के अध्यक्ष थे। आप जयपुर के ‘समालोचक’ और ‘नागरी-प्राचारिणी-पत्रिका’ के सम्पादक थे। आपकी कहानियों में आपकी अद्भुत प्रतिभा, पूर्व कल्पना-शक्ति, वर्णन-चातुरी और अनूठी भाषा का परिचय मिलता है।

ऐसे विद्वान की स्वर्ग में भी आवश्यकता हुई। २८ वर्ष की अल्पायु में ही आप स्वर्ग सिधार गये। ]

बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवानों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गयी है कान पक गये हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगावें! जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़ों की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट सम्बन्ध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की अँगुलियों के पोरों को चींथकर अपने ही को सताया हुआ बताते हैं और संसार भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ के अवतार बने नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरीवाले, तंग चक्करदार गलियों में हर एक लढ़ीवाले के लिए ठहरकर, सब्र का समुद्र उमड़ा कर ‘बचो खालसा जी’ ‘हटो भाई जी’, ‘ठहरना भाई’, ‘आने दो लाला जी’, ‘हटो बाछा’ कहते हुए सफेद फेंटों, खच्चरों और बत्तकों, गन्ने, खोमचे और भारेवालों के जंगल में से राह खेते हैं। क्या मज़ाल है कि ‘जी’ और ‘साहब’ बिना सुने किसी को हटना पड़े। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती ही नहीं, चलती है पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई। यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी वचनावली के ये नमूने हैं–हट जा, जीणे जोगिये; हट जा करमा वालिये; हट जा पुत्ताँ प्यारिये, बच जा लम्बी बालिये। समष्टि में इनका अर्थ है तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहियों के नीचे आना चाहती है? बच जा।

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