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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


लहनासिंह बारह वर्ष का है। अमृतसर में मामा के यहाँ आया हुआ है। दहीवाले के यहाँ, सब्जीवाले के यहाँ हर कहीं उसे वह आठ साल की लड़की मिल जाती है। जब वह पूछता है, तेरी कुड़माई हो गयी है? तब ‘धत्’ कहकर वह भाग जाती है। एक दिन उसने वैसे ही पूछा तो उसने कहा–हाँ कल हो गयी, देखते नहीं रेशम के फूलोंवाला सालू? सुनते ही लहनासिंह को दुःख हुआ। क्रोध हुआ। क्यों हुआ?

‘वज़ीरासिंह पानी पिला दे।’

पचीस वर्ष बीत गये। अब लहनासिंह नं० ७७ रैफ़ल्स में जमादार हो गया है। उस आठ वर्ष की कन्या का ध्यान ही न रहा। न मालूम वह कभी मिली थी, या नहीं। सात दिन की छुट्टी लेकर जमीन के मुकदमें की पैरवी करने वह अपने घर गया। वहाँ रेजिमेंट के अफ़सर की चिट्ठी मिली कि फौज लाम पर जाती है। फौरन चले जाओ। साथ ही सूबेदार हज़ारासिंह कि चिट्ठी मिली कि मैं और बोधासिंह भी लाम पर जाते हैं। लौटते हुए हमारे घर होते जाना। साथ चलेंगे। सूबेदार का गाँव रास्ते में पड़ता था और सूबेदार उसे बहुत चाहता था। लहनासिंह सूबेदार के यहाँ पहुँचा।

जब चलने लगे, तब सूबेदार ‘बेड़े’ (ज़नाने) रास्ते में से निकलकर आया। बोला–‘लहना, सूबेदारनी तुमको जानती हैं। जा मिल आ।’ लहनासिंह भीतर पहुँचा। सूबेदारनी मुझे जानती है? कब से? रेजिमेंट के क्वार्टरों में तो कभी सूबेदार के घर के लोग रहे नहीं। दरवाजे पर जाकर ‘मत्था टेकना’ कहा, असीम सुनी। लहनासिंह चुप।

‘मुझे पहचाना?’

‘नहीं ।’

‘तेरी कुड़माई हो गई!–धत–कल हो गयी–देखते नहीं रेशमी बूटोंवाला सालू–अमृतसर में–’
भावों की टकराहट से मूर्छा खुली। करवट बदली। पसली का घाव बह निकला।

‘वज़ीरा पानी पिला–उसने कहा था।’

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