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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ



राजपूतनी का प्रायश्चित

श्री सुदर्शन

[ आपका जन्म स्थान स्यालकोट है। आपका वास्तविक नाम पंडित बद्रीनाथ है। आपने उर्दू में अधिक रचनाएँ की हैं। हिंदी में भी आपके नाटक, गल्पसंग्रह प्रकाशित हुए हैं। कहानी लेखकों में आप अग्रगण्य माने जाते हैं। आपकी भाषा सरल, मनोरंजक होती है। आप वर्णन करने में वर्ण्य विषय की प्रतिमूर्ति खड़ी कर देते हैं। आपकी कहानियों का विषय सामाजिक समस्या होती है। ]

कुँवर वीरमदेव कलानौर के राज्य हरदेवसिंह के पुत्र थे, तलवार के धनी और पूरे रणवीर। प्रजा उन पर प्राण देती थी, और पिता देख-देखकर फूला न समाता था। वीरमदेव ज्यों-ज्यों प्रजा की दृष्टि में सर्वप्रिय होते जाते थे, उनके सद्गुण बढ़ते जाते थे। प्रातःकाल उठकर स्नान करना, निर्धनों को दान देना, यह उनका नित्यकर्म था, जिसमें कभी चूक नहीं होती थी। वे मुस्कराकर बातें करते थे, और चलते-चलते बाट में कोई स्त्री मिल जाती, तो नेत्र नीचे करके चले जाते। उनका विवाह नरपुर के राजा की पुत्री राजवती से हुआ। राजवती केवल देखने में ही रूपवती न थी, वरन् शील और गुणों में भी अनुपम थी। जिस प्रकार वीरमदेव पर पुरुष मुग्ध थे, उसी प्रकार राजवती पर स्त्रियाँ लट्टू थीं। कलानौर की प्रजा उनको ‘चन्द्र-सूर्य की जोड़ी’ कहा करती थी।

वर्षा के दिन थे, भूमि के चप्पे-चप्पे पर से सुन्दरता निछावर हो रही थी। वृक्ष हरे-भरे थे, नदी-नाले उमड़े हुए थे। वीरमदेव सफलगढ़ पर विजय प्राप्त करके प्रफुल्लित मन से वापस आ रहे थे। सम्राट् अलाउद्दीन ने उनके स्वागत के लिए बड़े समारोह से तैयारियाँ की थीं। नगर के बाजार सजे हुए थे। छज्जों पर स्त्रियाँ थीं। दरबार के अमीर अगवानी को उपस्थित थे। वीरमदेव उत्फुल्ल बदन से सलामे लेते और दरबारियों से हाथ मिलाते हुए दरबार में पहुँचे। उनका तेजस्वी मुखमंडल और विजयी चाल-ढाल देखकर अलाउद्दीन का हृदय बदल गया। परंतु वह प्रकट हँसकर बोला–‘वीरमदेव! तुम्हारी वीरता ने हमारे मन में घर कर लिया है। इस विजय पर तुमको बधाई है।

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