कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
|
4 पाठकों को प्रिय 14 पाठक हैं |
प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
जीतसिंह अकड़कर खड़ा हो गया और तनकर बोला–‘समरभूमि में तुमने पराजय दी है, परंतु वचन निबाहने में तुम मुझसे बहुत पीछे हो।
‘बाल्यावस्था में मेरी तुम्हारी प्रतिज्ञा हुई थी। वह प्रतिज्ञा मेरे हृदय में वैसी-की-वैसी बनी हुई है, परन्तु तुमने अपने पतित हृदय की तृप्ति के लिए नया बाग और नया पुष्प चुन लिया है। अब से पहले मैं समझता था कि मैं तुमसे पराजित हुआ, परन्तु अब मेरा सिर ऊँचा है। क्योंकि तुम मुझसे कई गुना अधिक नीचे हो। पराजय लज्जा है, परंतु प्रेम की प्रतिज्ञा को पूरा न करना पतन का कारण है।’
वीरमदेव यह वक्तृता सुनकर सन्नाटे में आ गये और आश्चर्य से बोले–‘तुम कौन हो? मैंने तुमको अभी तक नहीं पहचाना।’
‘मैं...मैं सुलक्षणा हूँ।’
वीरमदेव के नेत्रों से पर्दा हट गया, और उनको वह अतीत काल स्मरण हुआ, जब वे दिन-रात सुलक्षणा के साथ खेलते रहा करते थे। इकट्ठे फूल चुनते इकट्ठे मंदिर में जाते और इकट्ठे पूजा करते थे। चंद्रदेव की शुभ्र ज्योत्स्ना में वे एक स्वर से मधुर गीत गाया करते थे और प्रेम की प्रतिज्ञाएँ किया करते थे। परंतु अब दिन बीत चुके थे, सुलक्षणा और वीरमदेव के मध्य में एक विशाल नदी का पाट था।
सुलक्षणा ने कहा–‘वीरमदेव! प्रेम के पश्चात दूसरा दर्जा प्रतिकार का है। तुम प्रेम का अमृत पी चुके हो, अब प्रतिकार के विषपान के लिए अपने होठों को तैयार करो।’
वीरमदेव उत्तर में कुछ कहा चाहते थे कि सुलक्षणा क्रोध से होठ चबाती हुई खेमें से बाहर निकल गयी, और वीरमदेव चुपचाप बैठे रह गये।
दूसरे दिन कलानौर के दुर्ग से घनगर्ज शब्द ने नगरवासियों को सूचना दी, वीरमदेव आते हैं। स्वागत के लिए तैयारियाँ करो।
हरदेवसिंह ने पुत्र का मस्तक चूमा। राजवती आरती का थाल लेकर द्वार पर आयी कि वीरमदेव ने धीरता से झूमते हुए दरवाजे में प्रवेश किया। परंतु अभी आरती न उतार पायी थी कि एक बिल्ली टाँगों के नीचे से निकल गई और थाल भूमि पर आ रहा। राजवती का हृदय धड़क गया, और वीरमदेव को पूर्व घटना याद आ गयी।
|