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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


सुलक्षणा असामान्य स्त्री थी। उसके हृदय में बाल्यावस्था से वीरमदेव की मूर्ति विराज रही थी। उसे प्राप्त करने के लिए वह पुरुष के वेश में पठानों के साथ मिलकर वीरमदेव की सेना से लड़ी और इस वीरता से लड़ी कि वीरमदेव उस पर मुग्ध हो गये। परन्तु जब उसे पता लगा कि मेरा स्वप्न भंग हो गया है, तो उसने क्रोध के वशीभूत भयंकर कर्म करने का निश्चय कर लिया। अनेक यत्नों के पश्चात वह अलाउद्दीन के पास गयी। अलाउद्दीन पर जादू हो गया। सुलक्षणा अतीव सुंदरी थी। अलाउद्दीन बिलासी मनुष्य था, प्रेमकटारी चल गयी। सुलक्षणा ने जब देखा कि अलाउद्दीन बस में है, तो उसने प्रस्ताव किया कि यदि आप वीरमदेव का सिर मँगवा दें, तो मैं आपको और आपके दीन को स्वीकार करूँगी। अलाउद्दीन ने इसे स्वीकार किया। इस अंतर में सुलक्षणा ने निवास के लिए पृथक महल खाली कर दिया।

आठ मास के पश्चात् सुलक्षणा के पास संदेश पहुँचा कि कल प्रातः काल वीरमदेव का सिर उसके पास पहुँच जायगा। सुलक्षणा ने शांति की श्वास लिया, अब प्रेम की प्यास बुझ गयी। उसने मुझे तुच्छ समझकर ठुकराया था। मैं उसके सिर को ठोकर मारूँगी। वीरमदेव ने मुझे तुच्छ स्त्री समझा, परंतु यह विचार न किया कि स्त्री देश भर का नाश कर सकती है। प्रेम भयानक है, परंतु प्रतिकार उससे भी अधिक भयंकर है। सुलक्षणा हँसी। इस हँसी में प्रतिकार का निर्दय भाव छुपा हुआ था।

विचार आया, मरने से पहले एक बार उसे देखना चाहिए। वह उस दुर्दशा में लज्जित होगा। सहायता के लिए प्रार्थना करेगा। मैं गौरव से सिर ऊँचा करूँगी। वह पृथ्वी में घुसता जायगा, मेरी ओर देखेगा परन्तु करुण दृष्टि से। उस दृष्टि पर खिलखिलाकर हँस देने पर उसे अपनी और मेरी अवस्था का ज्ञान होगा।

इतने में बादशाह सलामत आये। सुलक्षणा के मन की इच्छा पूरी हुई। कुँआ प्यासे के पास आया। बादशाह ने देखा, सुलक्षणा सादी पोशाक में है। इस पर सुंदरता उससे फूट-फूटकर निकल रही है। हँसकर बोला–‘सादगी के आलम में यह हाल है, तो जेवर पहनकर बिल्कुल ही गजब हो जायगा। कहो तबीयत अच्छी है?’

सुलक्षणा ने लजाकर उत्तर दिया–‘जी हाँ, परमात्मा की कृपा से।’

‘तुम्हारी चीज सुबह तुम्हारे पास पहुँच जायगी।’

‘मैं बहुत कृतज्ञ हूँ, परंतु एक प्रार्थना है, आशा है आप स्वीकार करेंगे।’

अलाउद्दीन ने सुलक्षणा के चेहरे की ओर देखते हुए कहा–‘क्या आज्ञा है?’

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