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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


‘हाँ, देश क्या है, स्वर्ग है। मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस गुना जमीन माँग लूँगा और फूलों के बूटे लगाऊँगा!’

‘लाड़ी होराँ को भी बुला लोगे? या वही दूध पिलाने वाली फिरंगी मेम–’
‘चुप कर। यहाँ वालों को शरम नहीं।’
‘देश-देश की चाल है। आज तक मैं उसे समझा न सका कि सिख तम्बाकू नहीं पीते। वह सिगरेट देने में हठ करती है, ओठों में लगाना चाहती है और मैं पीछे हटता हूँ तो समझती है कि राजा बुरा मान गया, अब मेरे मुल्क के लिए लड़ेगा नहीं?’

‘अच्छा अब बोधासिंह कैसा है!’

‘अच्छा है।’

‘जैसे मैं जानता ही न होऊँ। रात भर तुम अपने दोनों कम्बल उसे उढ़ाते हो। आप सिगड़ी के सहारे गुजर करते हो। उसके पहरे पर आप पहरा दे आते हो। अपने सूखे लकड़ी के तख्तों पर उसे सुलाते हो, आप कीचड़ में पड़े रहते हो। कहीं तुम माँदे न पड़ जाना। जाड़ा क्या है मौत है, और ‘निमोनिया’ से मरने वालों को मुरब्बे नहीं मिला करते!’

‘मेरा डर करो। मैं तो बुलेल की खड्ड के किनारे मरूँगा। भाई कीरतसिंह की गोदी पर मेरा सिर होगा और मेरे हाथ के लगाये हुए आंगन के आम के पेड़ की छाया होगी।’

वज़ीरासिंह ने त्योरी चढ़ाकर कहा–क्या मरने-मारने की बात लगायी है?
इतने में एक कोने से पंजाबी गीत की आवाज़ सुनायी दी। सारी ख़ंदक़ गीत से गूँज उठी और सिपाही फिर ताजे हो गये; मानो चार दिन सोते और मौज ही करते रहे हों।

दो पहर रात हो गयी। सन्नाटा छाया हुआ है। बोधासिंह खाली बिसकुटों के तीन टीनों पर अपने दोनों कम्बल बिछाकर और लहनासिंह के दो कम्बल और एक ब्रेनकोट ओढ़कर सो रहा है। लहनासिंह पहरे पर खड़ा हुआ है। एक आँख खाई के मैख पर है और एक बोधासिंह के दुबले शरीर पर। बोधासिंह कराहा।

‘क्यों बोधा सिंह भाई, क्या है?’

‘पानी पिला दो।’

लहनासिंह ने कटोरा उसके मुँह से लगाकर पूछा–कहो कैसे हो?

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