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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


बुड्ढे की ओर से मुझे मुक्ति मिली। पर उसी रात को मेरे पास आया डिक। उसने बताया कि वह हिंदी शिक्षावली दो भाग खतम कर चुका है; वह और भी जो ललिता की आज्ञा हो करने को तैयार है; वह अब जल्दी ही इंगलैंड वापस चला जाएगा, पर ललिता के बिना कैसे रहेगा; उसने अपने पैसे के, अपनी योग्यता के, अपनी स्थिति के, अपने बड़प्पन के वर्णन संक्षेप में पेश किये; अपना प्रेम बताया और उसके स्थायित्व की शपथ खायी; इस तरह अपना संपूर्ण मामला मेरे सामने रखने के बाद मेरी सम्मति चाही। पर मेरी सम्मति का प्रश्न नहीं था। मेरी तो उसमें हर तरह की सम्मति थी। मैंने उसे आश्वासन दिया–‘कल ललिता से जिक्र करूँगा।’

वह बोला–‘देखिए, मैं नहीं जानता क्या बात है। पर मुझे ललिता अवश्य मिलनी चाहिए। मेरी उससे बातें हुई हैं खूब हुई हैं। वह मेरे गोरेपन से घबड़ाती है। पर मैं उससे कह चुका हूँ, आपसे कहता हूँ कि इसमें मेरा दोष तो है नहीं फिर मैं हिंदी सीखता जा रहा हूँ। वह कहती है मुझमें और उसमें बहुत अंतर है। मैं मानता हूँ–है। न होता तो बात ही क्या थी? पर हम एक हुए तो मैं कहता हूँ, सब अंतर हवा हो जायगा, वह जो चाहेगी सो ही करूँगा।’

मैंने उसे विश्वास दिलाया, ‘मैं अपने भरसक प्रयत्न करूँगा।’

उसने कहा, ‘ललिता के भारतीय वातावरण में पले होने के कारण यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि वह इस संबंध में अपने अभिभावक से आज्ञा प्राप्त करे। इसलिए उसने मुझसे कहना ठीक समझा। मैंने उसे फिर विश्वास दिलाया और वह मेरी चेष्टा में सफलता की कामना मनाता हुआ चला गया।

अगले रोज ललिता से जिक्र छेड़ा। मैंने कहा–‘ललिता, रात में डिक आया था।’

ललिता चुप थी।

‘तुम जानती हो, वह क्या चाहता है? तुम यह भी जानती होगी कि मैं क्या चाहता हूँ?’

वह चुप थी। वह चुप ही रही।

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