कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
‘अद्भुत! सात दिन पेट काटकर आज अच्छा भोजन न करके तुम्हें पीने की सूझी है? यह भी...’
‘सरकार! मौज-बहार की एक घड़ी, एक लम्बे दुःख-पूर्ण जीवन से अच्छी है उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिये जा सकते हैं।’
‘अच्छा आज दिन भर तुमने क्या-क्या किया?’
‘मैंने? अच्छा सुनिए-सबेरे कुहरा पड़ता था, मेरे धुँआ से कम्बल-सा वह भी सूर्य के चारों ओर लिपटा था। हम दोनों मुँह छिपाये पड़े थे।’
ठाकुर साहब ने हँसकर कहा–‘अच्छा तो मुँह छिपाने का कोई कारण?’
‘सात दिन से एक बूँद भी गले में न उतरी थी। भला मैं कैसे मुँह दिखा सकता था। और जब बारह बजे धूप निकली, तो फिर लाचारी थी। उठा, हाथ-मुँह धोने में जो दुख हुआ, सरकार वह क्या कहने की बात है? पास में पैसे बचे थे। चना चबाने से दाँत भाग रहे थे। कटकटी लग रही थी। पराठे वाले के यहाँ पहुँचा, धीरे-धीरे खाता रहा और अपने को सेंकता भी रहा। फिर गोमती किनारे चला गया! घूमते-घूमते अँधेरा हो गया, बूँदे पड़ने लगीं। तब कहीं भगा और आपके पास आ गया।’
‘अच्छा, जो उस दिन तुमने गडेरिये वाली कहानी सुनायी थी जिसमें आसफुद्दौला ने उसकी लड़की का आँचल भुने हुए भुट्टे के दानों के बदले मोतियों से भर दिया था, यह क्या सच है?’
‘सच? अरे वह गरीब लड़की भूख से उसे चबाकर थू-थू करने लगी...रोने लगी। ऐसी निर्दय दिल्लगी बड़े ही लोग ही कर बैठते हैं। सुना है श्रीरामचंद्र ने भी हनुमान से ऐसा ही...’
ठाकुर साहब ठठाकर हँसने लगे। पेट पकड़कर हँसते-हँसते लोट गये। साँस बटोरते हुए सम्हलकर बोले–‘और बड़प्पन कहते किसे हैं? कंगाल तो कंगाल! गधी लड़की! भला उसने कभी मोती देखे थे, चबाने लगी होगी। मैं सच कहता हूँ, आज तक तुमने जितनी कहानियाँ सुनायी, सबमें बड़ी टीस थी। शाहजादों के दुखड़े, रंग-महल की अभागिनी बेगमों के निष्फल प्रेम, करुणा-कथा और पीड़ा से भरी हुई कहानियाँ ही तुम्हें आती हैं, पर ऐसी हँसाने वाली कहानी और सुनाओ, तो मैं तुम्हें अपने सामने ही बढ़िया शराब पिला सकता हूँ।’
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