कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
‘कहीं भी रह सकूँगा, पर उस ठाकुर की नौकरी न कर सकूँगा!’ –शराबी ने एक बार स्थिर दृष्टि से उसे देखा। बालक की आँखें दृढ़ निश्चय की सौगंध खा रही थीं।
शराबी ने मन ही मन कहा–बैठे-बैठाये यह हत्या कहाँ से लगी। अब तो शराब न पीने की मुझे भी सौगंध लेनी पड़ी।
वह साथ ले जाने वाली वस्तुओं को बटोरने लगा! एक गट्ठर का और दूसरा कल का, दो बोझ हुए।
शराबी ने पूछा–तू किसे उठायेगा?
‘जिसे कहो।’
‘अच्छा, तेरा बाप जो मुझको पकड़े तो?’
‘कोई नहीं पकड़ेगा, चलो भी। मेरे बाप मर गये।’
शराबी आश्चर्य से उसका मुँह देखता हुआ कल उठाकर खड़ा हो गया। बालक ने गठरी लादी। दोनों कोठरी छोड़कर चल पड़े।
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