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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


 

पछतावा

श्री प्रेमचन्द

[ आपका जन्म काशी के पास लमही नामक गाँव में हुआ था। आपका असली नाम धनपत राय है। आप पहिले उर्दू में लिखते थे। सन् १९१९ से आपने हिंदी में लिखना आरम्भ कर दिया। आपकी परिमार्जित लेखनी द्वारा निःसृत कहानियों और उपन्यासों की धूम मच गयी। हिंदी प्रेमियों ने आपके उपन्यासों पर मुग्ध होकर आपको ‘उपन्यास सम्राट्’ की पदवी से विभूषित किया।
आपकी कहानियों में चरित्र-चित्रण और मानसिक भावों का विश्लेषण अत्यंत सुंदर होता है। आपकी भाषा सीधी-सादी और संगठित होती है। आपके वर्णनों में स्वाभाविकता रहती है। आप वर्ण्य विषय की सजीव प्रतिमा खड़ी कर देते हैं। आपकी मुख्य कृतियाँ ये हैं–
उपन्यास–प्रतिज्ञा, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र।
नाटक–संग्राम, प्रेम की वेदी, कर्बला।
गल्प-संग्रह–नवनिधि, सप्तसरोज, प्रेम पूर्णिमा प्रेमपचीसी, प्रेम-तीर्थ, प्रेम-द्वादशी, मानसरोवर आदि।)

पंडित दुर्गानाथ जब कालेज से निकले तो उन्हें जीवन-निर्वाह की चिंता उपस्थित हुई। वे दयालु और धार्मिक पुरुष थे। इच्छा थी कि ऐसा काम करना चाहिए जिसमें अपना जीवन भी साधारणतः सुखपूर्ण व्यतीत हो और दूसरों के साथ भलाई और सदाचरण का भी अवसर मिले, वे सोचने लगे–यदि किसी कार्यालय में क्लर्क बन जाऊँ तो अपना निर्वाह तो हो सकता है, किन्तु सर्वसाधारण से कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहेगा। वकालत में प्रविष्ट हो जाऊँ तो दोनों बातें सम्भव हैं; किंतु अनेकाअनेक यत्न करने पर भी अपने को पवित्र रखना कठिन होगा। पुलिस विभाग में दीनपालन और परोपकार के लिए बहुत-से अवसर मिलते रहते हैं। किंतु एक स्वतन्त्र और सद्विचार प्रिय मनुष्य के लिए वहाँ की हवा हानिप्रद है। शासन-विभाग में नियम और नीतियों की भरमार रहती है। कितना ही चाहो पर वहाँ कड़ाई और डाँट-डपट से बचे रहना असम्भव है। इसी प्रकार सोच-विचार के पश्चात् उन्होंने निश्चय किया कि किसी जमींदार के यहाँ ‘मुख्तार आम’ बन जाना चाहिए। वेतन तो अवश्य कम मिलेगा; किन्तु दीन खेतिहारों से रात-दिन सम्बन्ध रहेगा। उनके साथ सद्व्यवहार का अवसर मिलेगा। साधारण जीवन निर्वाह होगा और विचार दृढ़ होंगे।

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