लोगों की राय

कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

14 पाठक हैं

प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


 

फूटा शीशा

श्री सद्गुरुशरण अवस्थी, एम०ए०

[ आप हिन्दी से एम०ए० हैं। आपने कई ग्रन्थों की रचना की है। आपके ‘गद्यगाथा’ तथा ‘तुलसी के चार दल’ –आलोचनात्मक ग्रन्थ हैं। ‘भ्रमित पथिक’ नामक आपका उपन्यास भी छपा है। आपकी दस कहानियों का संग्रह ‘फूटा शीशा’ नाम से प्रकाशित हुआ है। आपकी प्रतिभा सर्वतोमुखी है। आपको साहित्य से प्रेम है, लिखने का शौक है। ]

मेरे घर के ठीक सामने ही एक गिरे हुए भवन के भग्नावशेष को समतल करके एक घर बना लिया गया है। उसमें दो कुटुम्बों के दराने होते हैं। यही इनकी आजीविका का एकमात्र आश्रय है। दोनों कुटुम्बों में स्त्री-राज्य है, पुरुष अनुचर हैं, अनुमोदक हैं और श्रमजीवी हैं। उनमें स्वतन्त्र अलाप की स्फूर्ति नहीं, वे केवल स्वर मिलाने वाले वाद्य यन्त्र हैं। श्यामू की बहू अभी कठिनता से पचीस वर्ष की होगी, परन्तु घूँघट के भीतर के छोटे मुँह की छोटी जीभ बिजली के पंखे से भी अधिक गतिशील है। कालिका की नानी वृद्ध है, परन्तु स्वर बड़ा कर्कश है। वह श्यामू की तीन पीढ़ियों का समाचार रखती है। किसी ने उसे कुछ कहा नहीं कि वह एक से एक काली चूड़ियाँ अपने मुँह के ग्रामोफोन पर चढ़ाने लगती है और सुनने वाले दंग रह जाते हैं।

जाति के ये दोनों कुटुम्ब तेली थे। पक्की ईंटों की एक पंक्ति, दो दरानों की सीमा थी। तीसरे-चौथे दिन सूत रखकर यह सीधी की जाती थी, परन्तु वह अधिकतर खिसककर कालिका की नानी का हिस्सा छोटा-सा बना देती थी। बहुत बार झगड़ा इस जड़ सीमा की चेतन गति के कारण हुआ करता था। संभुआ की बहू ने पहले तो सड़क की ओर वाला भाग पसंद किया, परन्तु जब उसमें गायें घुसकर अरहर खा जाने लगीं तो उसने इस बात पर लड़ना आरम्भ किया कि उसे पीछे का भाग मिलना चाहिए। दूसरा कुटुम्ब इस पर बिल्कुल तैयार न हुआ। कालिका की नानी तो वैसे गाय हाँकने के लिए उठती ही न थी, परन्तु यदि कोई देखने वाला समक्ष पड़ गया तो इस प्रकार धीरे-धीरे ‘हट-हट’ करती हुई उठती जिससे लोग उसकी सहानुभूति देख भी लें और गाय अरहर खाकर स्वत: चली जाय। कभी-कभी मन के शत्रुभाव और दिखावटी सहानुभूति के बीच में पड़े हुए उनके वृद्ध शरीर की विचित्र दशा देखने में आती थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book