कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है
और, आज के समय में भी जब बिगाड़-विरोध के सामान सब ओर से जमा होकर भयावनी बाढ़ का रूप धारण कर राष्ट्रीय नौका को डुबाने के लिए भायँ-भायँ करते बढ़ रहे हैं, यदि कोई आशा है, तो उसी के मंगल नाम से, जो हमारे बेड़े को पार लगाने में महामंत्र का कार्य करेगा। अतः हे हिंदू-मुसलमान भाइयो! मोहनिद्रा को त्यागकर उठो और सिकंदरे की राह लो, जिसमें उसकी पवित्र समाधि पर मुसलमान अगर दो फूल चढ़ाएँ तो हिंदू भाइयो, तुम भी थोड़ा पानी डालकर उसकी आत्मा को प्रसन्न कर दिया करो। कोई आश्चर्य नहीं कि उसके आशीर्वाद से हमारे बे-बुनियाद झगड़े और मतभेद मिटकर फिर मेल और एकता की सूरत पैदा हो जाय। खेद और लज्जा की बात है कि ब्रिटिश सरकार परदेशी होते हुए भी अपने को उसका स्थानापन्न और उसके अनुकरण में गौरव माने और तुम अपने देशभक्त राष्ट्रीय सम्राट् की बहुमूल्य विरासत की ओर उठकर भी न देखो।
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