लोगों की राय

कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह)

कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :145
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8500
आईएसबीएन :978-1-61301-190

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

158 पाठक हैं

स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है


कुंभलमेर पर कब्जा कर लेने के बाद राजा मानसिंह ने धरमेती गोगंडा के किलों को जा घेरा। अब्दुल्ला नाम के एक और सरदार ने दक्षिण दिशा से चढ़ाई की। फरीद खाँ ने छप्पन पर हमला किया। इस प्रकार चारों ओर से घिरकर प्रताप के लिए अकबर की अधीनता स्वीकर कर लेने के सिवा और कोई रास्ता न रहा; पर वह शेरदिल राजपूत उसी दमखम, उसी हिम्मत व हौसले और उसी दृढ़ता के साथ शत्रु का सामना करता रहा। कभी अँधेरी रात में जब शाही फौज बेखबर सोती होती, वह अचानक अपनी घात की जगह से निकल पड़ता, इशारों से अपने साथियों को इकट्ठा कर लेता और जो शाही फौज करीब होती, उसी पर चढ़ दौड़ता। फरीद खाँ को, जो राणा को गिरफ्तार करने के लिए जंजीर बनवाए बैठा था, उसने ऐसी चतुराई से एक दुर्गम घाटी में जा घेरा कि उसकी सेना का एक भी आदमी जीवित न बचा।

आखिर शाही फौज भी इस ढंग की लड़ाई से ऊब गई। मैदानों के लड़ने वाले मुगल पहाड़ों में लड़ना क्या जानें। उस पर से जब वर्षा आरंभ हो जाती, तो चौतरफा महामारी फैल जाती। यह बरसात के दिन प्रताप के लिए ज़रा दम लेने के दिन थे। इसी तरह कई बरसात बीत गए। प्रताप के साथियों में से कुछ ने तो लड़कर वीरगति प्राप्त की, कुछ यों ही मर-खप गए। कुछ जो जरा बोदे थे, इधर-उधर दबक रहे। रसद और खुराक के लाले पड़ गए। प्रताप को सदा यह खटका लगा रहता कि कहीं मेरे लड़के-बाले शत्रु के पंजे में न फँस जायँ। एक बार वहाँ के जंगली भीलों ने उनको शाही फौज से बचाया और एक टोकरे में रखकर जावरा की खानों में छिपा दिया, जहाँ वह उनकी सब प्रकार रक्षा और देखभाल करते रहे। वह बल्ले और जंजीरें अभी तक मौजूद हैं, जिनमें यह टोकरे लटका दिये जाते थे, जिसमें हिंस्र जंतुओं से बच्चों को डर न रहे। ऐसे-ऐसे कष्ट-कठिनाइयाँ झेलने पर भी प्रताप का अटल निश्चय तनिक भी न हिला। वह अब भी किसी गुफ़ा में अपने मुट्ठी भर आख़िरी दम तक साथ देनेवाले और सब प्रकार का अनुभव रखनेवाले साथियों के बीच उसी आनबान के साथ बैठता, जैसे राजसिंहासन पर बैठता था। उनके साथ उसी राजसी ढंग से बर्ताव करता। ज्योनार के समय खास-खास आदमियों को दोने प्रदान करता। यद्यपि यह दोने महज जंगली फलों के होते थे, परंतु पानेवाले उन्हें बड़े आदर-सम्मान के साथ लेते, माथे चढ़ाते और प्रसादवत् भोजन करते थे।

इसी वज्र सी दृढ़ता ने राणा को राजस्थान के संपूर्ण राजाओं की निगाह में हीरो–आदर्श वीर बना दिया। जो लोग अकबर के दरबारी बन गए थे, वह भी अब राणा के नाम पर गर्व करने लगे। अकबर जो प्रकृति के दरबार से वीरता और मर्दानगी लेकर आया था और बहादुर दुश्मन की कद्र करना जानता था, खुद भी अपने सरदारों से प्रताप की वीरता और साहस की सराहना करता। दरबार के कवि राणा की बड़ाई में पद्य रचने लगे। अब्दुर्रहीम खानखाना ने, जो हिंदी-भाषा में बड़ी सुन्दर कविता करते थे, मेवाड़ी भाषा में राणा की वीरता का बखान किया। वाह! कैसे गुणज्ञ और उदार हृदय लोग थे कि शत्रु की वीरता को सराहकर उसका दिल बढ़ाते और हौसले उभारते थे।

पर कभी-कभी ऐसे भी अवसर आ जाते कि अपने कुटुम्बियों, प्यारे बच्चों के कष्ट उससे न देखे जाते। उस समय उसका दिल बैठ जाता और अपने हाथ छाती में छुरी भोंक लेने को जी चाहता। शाही फौज ऐसी घात में लगी रहती कि पका हुआ खाना खाने की नौबत न आती। भोजन के लिए हाथ-मुँह धो रहे हैं कि जासूस ने खबर दी, शाही फौज आ गई और तुरंत सब छोड़-छाड़ भागे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book