कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)प्रेमचन्द
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महापुरुषों की जीवनियाँ
हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द का योगदान केवल कहानियों अथवा उपन्यासों तक ही सीमित नहीं है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पूर्व, तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है कि किशोर-किशोरियों के लिए ये न केवल ज्ञानवर्द्धक, प्रत्युत मनोरंजक भी सिद्ध होंगे।
इन्हें पढ़ते समय पाठकों को इतना ध्यान अवश्य रखना होगा कि कुछ सन्दर्भित तथ्य आज सर्वथा परिवर्तित हो चुके हैं। लेखक की युगानुभूति को परिवर्तित करना एक अनाधिकार चेष्टा ही मानी जाती, अतः ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ ही हमारा लक्ष्य रहा है।
अनुक्रम
1. राजा टोडरमल
2. श्री गोपालकृष्ण गोखले
3. गेरीबाल्डी
4. मौ. वहीदुद्दीन ‘सलीम’
5. डॉ. सर रामकृष्ण भांडारकर
6. बदरुद्दीन तैयबजी
7. सर सैयद अहमद खाँ
8. मौ० अब्दुल हलीम ‘शरर’
9. रेनाल्ड्स
राजा टोडरमल
यों तो अकबर का दरबार विद्या और कला, नीतिज्ञता, और कार्यकुशलता का भंडार था; पर इतिहास के पन्नों पर टोडरमल का नाम जिस आबताब के साथ चमका, राज्य-प्रबन्ध और शासन-नीति में जो स्मरणीय कार्य उसके नाम से संयुक्त हैं, वह उसके समकालीनों में से किसी को प्राप्त नहीं। ख़ानख़ाना, खानज़माँ और ख़ानआज़म की प्रलयंकारी तलवारें थीं, जिन्होंने अकबरी दुनिया में धूम मचा रखी थी; पर बिजलियाँ थीं कि अचानक कौंधी और फिर आँखों से ओझल हो गईं। अबुल फ़जल और फ़ैजी के अनुसंधान और गहरी खोजें थीं कि जिज्ञासु जन चाहें, तो आज भी उनसे अपनी ज्ञान-परिधि का विस्तार कर सकते हैं। परन्तु टोडरमल की यादगार, वह शासन-व्यवस्थाएँ और विधान हैं, जो सभ्यता और संस्कृति की इतनी प्रगति के बाद भी आज तक गौरव की दृष्टि से देखे और श्रद्धा के साथ बरते जाते हैं। न काल की प्रगति उन्हें छूने का साहस कर सकी और न शासन-प्रणाली के अदल-बदल।
टोडरमल जाति का खत्री और गोत्र का टंडन था। उसके जन्मस्थान के विषय में मतभेद है, पर एशियाटिक सोसाइटी की नयी खोजों ने निश्चित कर दिया है कि अवध प्रदेश के लाहरपुर ग्राम को उसकी जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। माँ-बाप निर्धनता के कारण कष्ट से दिन बिता रहे थे। उस पर यह विपत्ति और पड़ी कि अभी टोडरमल के हाथ-पाँव सँभलने न पाए थे कि बाप का साया भी सिर से उठ गया और विधवा माता ने न मालूम किन कठिनाइयों से इस होनहार बच्चे को पाला। पर भगवान की लीला को देखिए कि यही अनाथ और असहाय बालक सम्राट अकबर का प्रधान मंत्री हुआ, जिसकी लेखनी की सत्ता सारे भारतवर्ष में व्याप्त थी। दुनिया में बहुत कम ऐसी माताएँ होंगी, जिनके लड़के ऐसे सपूत होंगे और कम ही किसी सन्त-महात्मा का आशीर्वाद ईश्वर के दरबार में इस प्रकार स्वीकृत हुआ होगा।
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