लोगों की राय

कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

121 पाठक हैं

महापुरुषों की जीवनियाँ


निस्संदेह आपका आदर्श बहुत ऊँचा है, पर यही आदर्श सदा से न केवल उच्चाकांक्षी भारतीयों का रहा है, किन्तु उन उदारमना न्यायप्रिय अँगरेजों का भी रहा है, जो भूतकाल में भारतीयों के भाग्य के मालिक थे। जान ब्राइट, ब्रैडला, मेकाले और फास्ट जैसे मानव हितैषी, उदाराशय पुरुषों के सामने भी यही आदर्श था। लार्ड बेंटिंक और लार्ड रिपन जैसे महानुभावों ने भी इसी आदर्श के अनुशरण का यत्न किया और राजा राममोहन राय, जस्टिस, रानाडे और दादाभाई नौरोजी जैसे राष्ट्र के पथ प्रदर्शक भी इसी आदर्श का पुकार-पुकारकर समर्थन करते गए। मिस्टर गोखले भी इसी आदर्श के उत्साही सर्मथकों में थे और जब तक वह शुभ दिन न आये, जब कि सरकार इस आदर्श का अनुसरण करे, प्रत्येक उच्चाकांक्षी देशहितैषी का प्रथम कर्तव्य यही होगा कि वह इस आदर्श को कार्य रूप देने के यत्न में संलग्न रहे।

मिस्टर गोखले को जो लोकप्रियता और देश के नेताओं में जो प्रमुख स्थान प्राप्त था, उस पर प्रत्येक व्यक्ति को गर्व हो सकता है। आपने अपने को राष्ट्र पर उत्सर्ग कर दिया था। आपके हृदय में कोई लौकिक कामना थी, तो यही कि भारत भूमण्डल के उन्नत राष्ट्रों में सम्मान का पद प्राप्त करे और ग़रीबी के गहरे गढ़े से निकलकर समृद्धि के सतखंडे पर अपनी पताका फहराए। आप दिन-रात देश की भलाई के उपाय सोचने में ही डूबे रहते थे। निस्संदेह आप देश के नाम पर बिक गए थे। और यद्यपि सरकार ने आपकी निःस्वार्थ देशभक्ति, लोकहित की सच्ची कामना तथा न्यायशीलता का आदर किया और आपको ‘सितारे हिंद’ की उच्च उपाधि से सम्मानित किया, पर आप इतने विनम्र और शालीन थे कि इस आदर सम्मान को अपनी योग्यता से अधिक मानते थे। देशहित साधन की धुन में आपको मान-प्रतिष्ठा की तनिक भी इच्छा न थी।

मिस्टर दादाभाई नौरोजी में आपको भरपूर श्रद्धा थी। बंबई में उनकी सालगिरह का जलसा हुआ, तो उनके गुणगान में आपने बड़ी ओजस्विनी वक्तृता की, जिसके अन्तिम शब्द सोने के पानी से लिखे जाने योग्य हैं—

‘मेरे नौजवान दोस्तो! सोचो कि मिस्टर दादाभाई का जीवन कैसा उज्ज्वल आदर्श है, जो ईश्वर ने तुम्हारे लिए प्रस्तुत किया है। जिस उत्साह से तुमने श्रद्धांजलि अर्पित की, उसे देखकर हृदय को आनन्द होता है। पर हम इस, जलसे को कदापि सफल न समझेंगे, अगर तुम्हारा उभरा हुआ उत्साह इतने ही से संतुष्ट हो जाए। तुम्हारा फ़र्ज़ है कि उस जीवन से शिक्षा ग्रहण करो और अपना भीतर-बाहर उसी नमूने पर सँवारने की कोशिश करो जिसमें किसी दिन यह गुण तुम्हारी प्रकृति के भी अंग बन जाएँ। सज्जनों, सब कुछ जानने और देखने वाला परमात्मा प्रत्येक देश में समय-समय पर ऐसी आत्माएँ भेजा करता है, जो मार्गभ्रष्टों को रास्ता दिखाएँ और जिनके पदचिह्न का अनुसरण कर भूले-भटके बटोही अपने गन्तव्य स्थान को पहुँचें। निस्संदेह, दादाभाई नौरोजी इस अभागे देश की आँखों के तारे हैं। मुझसे कोई पूछे तो मैं जरूर कहूँगा कि आप जैसा ऊँचे विचार का देशभक्त दुनिया के किसी देश में मुश्किल से पैदा हुआ होगा। हममें से संभवतः कोई भी ऐसा न होगा, जो उस ऊंचाई तक पहुँच सके। ऐसे बहुत कम होंगे, जिन्होंने चित्त की इतनी दृढ़ता और ऐसा ऊँचा दिमाग़ पाया हो। पर हम सभी आपके समान जाति-धर्म का भेदभाव न रखकर अपने देश को प्यार कर सकते हैं। हम सभी उस उच्च लक्ष्य के लिए, जिस पर आपने अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया है, कुछ न कुछ यत्न कर सकते हैं। आपके जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा यही है कि देश और जाति की सेवा करो। अगर हमारे नौजवान भाई इस शिक्षा से थोड़ा बहुत भी लाभ उठाएँगे, तो देश का भविष्य निस्संदेह उज्ज्वल होगा, चाहे कभी-कभी समाँ अँधेरी ही क्यों न हो जाय।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book