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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


गेरीबाल्डी को यह समाचार सुनकर कब मन पर अधिकार रह सकता था ? तुरंत नौकरी से इस्तीफ़ा देकर मेज़िनी की मदद के लिए जा पहुंचा। पर संभवतः मसाला पक्का न था। भण्डा फूट गया और दल छिन्न-भिन्न हो गया। मेज़िनी तो गिरफ़्तार हो गया, पर गेरीबाल्डी किसी तरह भाग निकला, पर उसकी बेचैन तबीयत को चैन कहाँ ? सदा छिपे-छिपे पत्रों और संदेशवाहकों के द्वारा आग भड़काता रहता था। दो बरस बाद फिर एक दल तैयार किया। पर अबकी खुद गिरफ्तार हो गया। सामयिक शासन ने प्राणदण्ड का अधिकारी ठहराया। अपने सत्संकल्पों के लिए शहीद होने का समय आ ही पहुँचा था कि प्राणरक्षा का उपाय निकल आया। भागकर फ्रांस पहुँचा और ट्यूनिस होता हुआ दक्षिण अमेरिका में दाखिल हो गया। वहाँ उन दिनों कई जातियाँ स्वाधीनता के लिए अपने ऊपर शासन करने वाली शक्तियों से लड़ने को तैयार थीं। गेरीबाल्डी ने बारी-बारी से उनकी सहायता की। छोटी-छोटी सेनाएँ लेकर बरसों तक जंगलों पहाड़ों में लड़ता-भिड़ता रहा। उसकी पति-परायण पत्नी अनीता इस सारे क्लेश-कष्ट में उसकी साथी थी। इस समय लड़ने-भिड़ने में वह इतना व्यस्त रहता था कि चार बरस तक एक दिन भी आराम से बिस्तर पर लेटना न नसीब हुआ। जब नींद दबाती, तो घोड़े की पीठ पर सिर नीचा कर लेता। अधिक अवकाश हुआ, तो वहीं ज़मीन पर लम्बा हो जाता। इससे भी सराहनीय अनीता का धैर्य और दृढ़ता है, जो पति की खातिर यह सारी विपत्तियाँ और क्लेश झेलती और शिकायत में मुँह से एक शब्द न निकालती।

यद्यपि, ‘यंग इटाली’ (इटालियन युवक दल) और उसके अधिकतर सदस्य, जिनमें मेज़िनी भी शामिल था, निर्वासन के कष्ट भोग रहे थे; पर उनके विचार गुप्त परचों आदि के द्वारा जनसाधारण के हृदयों में स्वाधीनता का प्रेम जगाते थे। कई बार साधारण रूप में प्रकट होने के बाद अंत में १८४८ ई० में यह जोश भड़क उठा। कई नगरों में जनता ने आज़ादी के झण्डे ऊँचे कर दिए। मिलान और जिनेवा में आस्ट्रिया की सेना ने हार भी खायी। पेडमांट के शासक अलबर्ट ने पहले तो आस्ट्रिया के विरुद्ध किए गए इस विप्लव को बड़ी कड़ाई से दबा देने की कोशिश की; पर जब उसमें सफल न हुआ और जनता का जोश बढ़ता ही गया, तो इस डर से कि कहीं उसकी प्रजा भी उपद्रव पर उद्यत न हो जाए, छिपे-छिपे बागियों की मदद करने लगा। पोप ने भी इसी में भलाई देखी कि प्रजा का विरोध न किया जाए।

इस विप्लव के दिल बढ़ाने वाले समाचार समुद्र को पार करके अमरीका पहुँचे, तो उस परदेश में पड़े हुए देशभक्त के हृदय में फिर देशसेवा की उमंगें लहरें लेने लगीं। उसके साथ उस समय ८३ आदमियों से अधिक न थे। इसी छोटे दल को लेकर वह स्वदेश के स्वाधीनता-संग्राम में जूझने को रवाना हो गया। प्रस्थान के समय उन ८३ आदमियों में से भी बहुतों की हिम्मत छूट गई और वे सोचने लगे कि कहाँ हम और कहाँ आस्ट्रिया और अन्य यूरोपीय राज्यों की संयुक्त शक्ति। अन्त में केवल ५६ आदमी बच रहे। गेरीबाल्डी का हौसला दबना जानता ही न था। उसका दृढ़ संकल्प तनिक भी विचलित न हुआ। उन्हीं ५६ आदमियों और थोड़ी सी बंदूकों के साथ वह जहाज पर इटली के लिए रवाना हो गया। यहाँ जिस उत्साह और उल्लास से उसका स्वागत किया गया, वह इस बात का प्रमाण था कि जाति में जनजीवन का संचार और सच्चे स्वाधीनता-प्रेम का प्रसार हो गया है।

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