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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


गेरीबाल्डी ने कोई उपाय न देख, साथियों को छोड़ दिया और पत्नी को गोद में लेकर चला। तीन दिन बाद उसने एक किसान का दरवाजा खटखटाया और पानी माँगा। अनीता को बड़े ज़ोर की प्यास लगी हुई थी। पर वह मौत की प्यास थी, जो ‘शरबते मर्ग’ के चखने ही से बुझी। गेरीबाल्डी उसके मुँह में पानी की बूँदें टपका रहा था कि उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। गेरीबाल्डी के हृदय पर यह घाव आजीवन बना रहा, यहाँ तक कि अन्तिम क्षण में भी अपनी प्यारी पत्नी ही का नाम उसकी ज़बान पर था। बहुत रोया, पीटा। पर वहाँ रोने को भी अवकाश न था। दुश्मन क़रीब आ पहुँचा था। लाचार वहाँ से भागकर वेनिस पहुँचा और वहाँ से जिनेवा की ओर चला। पर कहीं अभीष्ट सिद्धि का कोई उपाय न दिखाई दिया। जिनेवा से ट्यूनिस होता हुआ जिब्राल्टर पहुँचा। पर यहाँ भी उसे चैन न मिल सका।

सरकार उसके नाम से घबराती थी। यहाँ तक कि जिब्राल्टर में भी जो अँगरेजी अमलदारी है, उसे रहने की इजाज़त न मिली। लाचार वहाँ से लिवरपूल (इंग्लैंड) आया और वहां से संयुक्त राष्ट्र अमरीका की राह ली। वहाँ कोई और उद्यम न पाकर उसने एक ब्रिटिश साबुन के कारखाने में नौकरी कर ली। आश्चर्य है कि ऐसे ऊँचे विचार और आकांक्षा रखने वाले पुरुष की ऐसे छोटे धंधे की ओर क्योंकर प्रवृत्ति हुई। संभवतः जीविका की आवश्यकता ने विवश कर रखा होगा, क्योंकि उसकी आर्थिक अवस्था बहुत ही हीन हो रही थी। कुछ दिन यहाँ बिताने के बाद उसने एक जहाज की नौकरी कर ली और अरसे तक चीन, आस्ट्रेलिया आदि में नाविक का कार्य करता रहा। कई साल तक इस प्रकार भटकने के बाद एक बार न्यूकैसल आया। यहाँ जनता ने बड़े हर्षोल्लास से उसका स्वागत किया और एक तलवार और एक दूरबीन उसे भेंट की। उस अवसर पर किए गए भाषण के उत्तर में गेरीबाल्डी ने कहा—

‘अगर तुम्हारे देश ग्रेटब्रिटेन को कभी किसी सहायक की आवश्यकता हो, तो ऐसा कौन अभागा इटालियन है, जो मेरे साथ उसकी मदद को तैयार न हो जाय। तुम्हारे देश ने आस्ट्रेलिया वालों को वह चाबुक लगाया है, जिसे वह कभी भूल न सकेंगे। अगर इंग्लैंड को कभी किसी जायज मामले में मेरे शस्त्रों की आवश्यकता पड़े, तो मैं उस बहुमूल्य तलवार को, जो तुमने मुझे उपहार-रूप में दिया है, बड़े गर्व के साथ म्यान से बाहर करूँगा।’

पेडमांट के राज्य में अब शान्ति स्थापित हो चुकी थी, इसलिए गेरीबाल्डी ने कचरेरा नामक टापू ख़रीद लिया और उसे बसाकर खेती का धन्धा करने लगा। खेती की पैदावार को आसपास के बाजारों में ले जाकर बेचा करता था। वह तो यहाँ बैठा हुआ खेतीबारी में उत्साह से लग रहा था, उधर इटली की अवस्था में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहा था। यहाँ तक कि आस्ट्रिया के अत्याचारों से ऊबकर पेडमांट की सरकार ने फ्रांस की सहायता से उसके साथ युद्ध की घोषणा कर दी।

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