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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


 

बदरुद्दीन तैयबजी

हिन्दुस्तान में मुसलमानों का प्रवेश दो रास्तों से हुआ। एक तो बिलोचिस्तान और सिन्ध की ओर से, दूसरा उत्तर-पश्चिम के पहाड़ी मार्गों से। सिंध की ओर से जो मुसलमान आये, वे अरब जाति के थे और व्यापार करने आये थे। पश्चिमोत्तर दिशा से आनेवाले, अफ़गान या पठान जाति के थे और देश-विजय के उत्साह से प्रेरित होकर आये थे। अस्तु, बम्बई प्रान्त में अधिकतर अरब जाति के मुसलमान आबाद हैं, जिन्हें अपने व्यापार सम्बन्ध के कारण भारतवासियों के साथ बराबरी का नाता जोड़ने में कोई रुकावट न थी। पठान विजेता थे, इसलिए इस देश के निवासियों के साथ अधिक हिल-मिल-कर रहना पसन्द न करते थे।

बदरुद्दीन तैयबजी भी एक प्रतिष्ठि अरब कुल के सपूत थे, जो बहुत अरसे से बम्बई में आबाद था। उनके पुरखे तिजारत के सिलसिले में हिन्दुस्तान आये थे और बदरुद्दीन के पिता तैयबजी भाई मियाँ एक सफल व्यापारी थे। यद्यपि वह धर्मनिष्ठ मुसलमान थे और उस ज़माने में बोहरों में अंग्रेजी पढ़ना कुफ्र समझा जाता था, पर ऐसे निरर्थक बन्धनों को मानकर अपने होनहार लड़के को अँगरेजी शिक्षा से वंचित रखना उन्होंने उचित न समझा, जो उनके दूरदर्शी और स्वाधीनचेता होने का प्रमाण है। बदरुद्दीन की आरंभिक फारसी और अरबी की पढ़ाई तो अरबी मदरसे में हुई, पर ज्यों ही इन भाषाओं में कुछ योग्यता हो गई, वह अलफ़िन्स्टन कालेज में भरती कर दिये गए और सोलह साल की उम्र में शिक्षा प्राप्ति के लिए इंग्लैंड भेज दिए गए, जहाँ से १८६७ ई० में बैरिस्टर होकर हिन्दुस्तान लौटे। यद्यपि उनका स्वास्थ्य ख़राब था और आँखें भी कमजोर हो गई थीं, फिर भी उन्होंने पुरुषोचित दृढ़ता के साथ पढ़ाई जारी रखी और अन्त में सफल हुए। हिन्दुस्तान आकर उन्होंने बम्बई कोर्ट में वकालत शुरू की।

वकालत का आरंभिक काल उस समय भी कड़ी मेहनत का होता था, खासकर बम्बई में, जहाँ बड़े-बड़े नामी वकील पहले से ही अपना सिक्का जमाए हुए थे, अपनी वकालत जमा लेना बदरुद्दीन के लिए आसान काम न था। पर दस साल के अन्दर ही आप वहाँ के नामी वकीलों की गिनती में आ गए। इसके साथ ही आप देश के महत्त्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक प्रश्नों का अध्ययन करते रहे, जो हर एक शिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य है, जो अपने दिल में देश का कुछ दर्द रखता हो और उसकी भलाई चाहता हो। आप अच्छे वक्ता भी थे। राजनीतिक सभाओं में कई मारके की वक्तृताएँ कीं, जिनसे वक्तारूप से भी देश में प्रसिद्ध हो गए। आपको भाषण करने का (पहला) मौक़ा १८७९ ई० में मिला, जब मैंचेस्टर से आनेवाले माल की चुंगी उठा दी गई और इस पर रोष प्रकाश के लिए बम्बई में जिम्मेदार व्यक्तियों की ओर से सार्वजनिक सभा की गई।

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