नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक) करबला (नाटक)प्रेमचन्द
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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।
यजीद– आपके वालिद मरहूम की खिदमत जितनी वफ़ादारी के साथ की, उसके लिये मैं आपका शुक्रगुजार हूं। मगर इस वक्त मुझे आपकी पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है। बसरे की सूबेदारी के लिए आप किसे तजबीज करते हैं?
रूमी– खुदा अमीर, को सलामत रखे। मेरे खयाल में अब्दुल्लाह बिन जियाद से ज्यादा लायक आदमी आपको मुश्किल से मिलेगा। जियाद ने अमीर मुआविया की जो खिदमत की, वह मिटाई नहीं जा सकती। अब्दुल्लाह उसी बाप का बेटा और खानदान का उतना ही सच्चा गुलाम है। उसके पास फ़ौरन कासिद भेज दीजिए।
यजीद– मुझे जियाद के बेटे से शिकायत है कि उसने बसरेवालों के इरादों की मुझे इत्तिला नहीं दी और मुझे यकीन है कि बसरेवाले मुझसे बग़ावत कर जायेंगे।
रूमी– या अमीर, आपका जियाद पर शक करना बेज़ा है। आपके मददगार आपके पास खुद-ब-खुद न आएंगे। वह तलाश करने से, मिन्नत करने से रियासत करने से आएंगे। आप ही आप वे लोग आएंगे, जो आपकी जात से खुद फायदा उठाना चाहते हैं। इस मंसब के लिये जियाद से बेहतर आदमी आपको न मिलेगा।
यजीद– सोचूंगा। (शराब का प्याला उठाता है।) जुहाक! कोई गीत तो सुनाओ। जिसकी मिठास उस फ़िक्र को मिटा दे, जो इस वक्त मेरे दिल और जिगर पर पत्थर की चट्टान की तरह रखी हुई है।
जुहाक– जैसा हुक्म।
{ डफ बजाकर गाता है। }
गाना
उठे हाथ उठाकर दुआ, करनेवाले।
वफ़ा पर हैं। मरते वफ़ा करनेवाले।
ज़फ़ा कर रहे हैं ज़फ़ा करनेवाले।
बचाकर चले खाक से अपना दामन,
लहद पर जो गुजरी हवा करनेवाले।
किसी बात भी तक कायम नहीं है,
ये जालिम, सितमगर, दगा करनेवाले।
तअज्जुब नहीं है, जो अब जहन दे दें,
ये जिच हो गए हैं दवा करनेवाले।
समझ ले कि दुश्वार है राजदारी,
किसी का किसी से गिला करनेवाले
अभी है बुतों को खुदाई का दावा,
खुदा जाने और क्या करनेवाले।
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