नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक) करबला (नाटक)प्रेमचन्द
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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।
साहस०– अगर वास्तव में यजीद ने खिलाफ़त का अपहरण कर लिया है, तो हमें अपने व्रत के अनुसार न्याय-पक्ष ग्रहण करना पड़ेगा। यजीद शक्तिशाली है, इसमें संदेह नहीं, पर हम न्याय-व्रत का उल्लंघन नहीं कर सकते। हमें उसके पास दूत भेजकर इसका निश्चय कर लेना चाहिए कि हमें किस पथ पर अनुसरण करना उचित है।
सिंहदत्त– जब यह सिद्ध है कि उसने अन्याय किया, तो उसके पास दूत भेजकर विलंब क्यों किया जाये? हमें तुरंत उससे संग्राम करना चाहिए। अन्याय को भी अपने पक्ष का समर्थन करने के लिये युक्तियों का अभाव नहीं होता।
हरजसराय– मैं पूछता हूं, अभी समर की बात क्यों की जाये। राजनीति के तीनों सिद्धांतो की परीक्षा कर लेने के पश्चात् ही शस्त्र ग्रहण करना चाहिए। विशेषकर इन समय हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम आत्मगौरव की दुहाई देते हुए रण-क्षेत्र में कूद पड़े। शस्त्र-ग्रहण सर्वदा अंतिम उपाय होना चाहिए।
सिहदत्त– धन आत्मा की रक्षा के लिये ही है।
हरजसराय– आत्मा बहुत ही व्यापक शब्द है। धन केवल धर्म की रक्षा के लिये है।
रामसिंह– धर्म की रक्षा रक्त से नहीं होती शील, विनय, सदुपदेश, सहानुभूति, सेवा, ये सब उसके परीक्षित साधन हैं, और हमें स्वयं इन साधनों की सफलता का अनुभव हो चुका है।
सिंहदत्त– राजनीति के क्षेत्र में ये साधन उसी समय होते हैं, जब शस्त्र उनके सहायक हों। अन्यथा युद्ध-लाभ से अधिक उनका मूल्य नहीं होता।
साहसराय-– हमारा कर्त्तव्य अपनी वीरता का प्रदर्शन अथवा राज्य प्रबन्ध की निपुणता दिखाना नहीं, न हमारा अभीष्ट अहिंसा-व्रत का पालन करना है। हमने केवल अन्याय को दमन करने का व्रत धारण किया है, चाहे उसके लिये किसी उपाय का आलंबन करना पड़े। इसलिए सबसे पहले हमें दूतों द्वारा यजीद के मनोभाव का परिचय प्राप्त करना चाहिए। उसके पश्चात् हमें निश्चय करना होगा कि हमारा कर्त्तव्य क्या है। मैं रामसिंह और भीरुदत्त से अनुरोध करता हूँ कि ये आज ही शाम को यात्रा पर अग्रसर हो जायें।
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