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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508
आईएसबीएन :978-1-61301-083

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


यजीद– नरगिस, रिंदों में एक जाहिद था, वह जिसका, अब कोई मस्त करने वाली गज़ल गाओ। काश सल्तनत की फिक्र न होती, तो तुम्हारे हाथों शराब के प्याले पीता उम्र गुजार देता।

नर०– खौफ़ से कांपती हुई बुलबुल मस्ताना ग़जलें नहीं गा सकती। शाख पर है, तो उड़ जाएगी, क़फस में है, तो मर जाएगी। मैंने खौफ़ से गुलशन को आबाद होते नहीं, वीरान देखा है। मेरा वतन कूफ़ा है और मैं कूफियों को खुद जानती हूँ। उन पर सख्तियां करके आप हुसैन को बुला रहे हैं। हुसैन कूफ़े में दाखिल हो गए, तो फिर आप हमेशा के लिए इराक से हाथ धो बैठेंगी। कूफ़ा वाले रियासतों से, जागीरों से, वजीफों से, थपकियों से काबू में आ सकते है। सख्ती से नहीं। अगर एतबार न हो, तो मुझ पर अपनी ताकत आजमा लो। अगर तुम्हारी दसों उंगलियां दस तलवारें हो जायें, तो भी आप मेरे मुंह से एक सुर भी नहीं निकलवा सकते। कूफ़ा मुसीबत में मुब्तिला है, मैं यहां नहीं रह सकती।

[प्रस्थान]

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