नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक) करबला (नाटक)प्रेमचन्द
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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।
कई आवाजें– हमें आलिम फ़ाजिल की जरूरत नहीं,
हज्जाज– कितना फैयाज़ है।
शिमर– किसी खलीफ़ा ने इतनी फैयाजी नहीं की।
शैस– आबिद कभी फैयाज नहीं होता।
अशअस– अभी, कुछ न पूछो, मसजिद के मुल्लाओं को देखो, रोटियों पर जान देते हैं।
जियाद– अच्छा, यजीद को आपने खलीफ़ा तो मान लिया, लेकिन हैजाज, मिस्र, यमन के लोग किसी और को खलीफ़ा मान लें, तो?
ब० अ०– हम खलीफ़ा यजीद के लिए जान दे देंगे। जियाद– बहुत मुमकिन है कि हजरत हुसैन ही को वे लोग अपना खलीफा बनाए, तो आप अपना कौल निभाएंगे?
ब० आ०– निभाएंगे। यजीद के सिवा और कोई खलीफ़ा नहीं हो सकता। बैयत लेने के लिये भेजा है और शायद खुद भी आ रहे हैं। यजीद को गोशे में बैठकर, खुदा की याद करना इससे कहीं अच्छा मालूम होगा कि वह इस्लाम में निफ़ाक की आग भड़काएं। अभी मौका है, आप लोग खूब गौर कर लें।
शिमर– हमने खूब गौर कर लिया है।
हज्जात– हुसैन को न जाने क्यों खिलाफ़त की हवस है। बैठे हुए खुदा की इबादत क्यों नहीं करते?
कीस– हुसैन मदीनावालों के साथ जो सलूक करेंगे, वह अभी हमारे साथ नहीं कर सकते।
शैस– उनका आना बला का आना है।
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