नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक) करबला (नाटक)प्रेमचन्द
|
4 पाठकों को प्रिय 36 पाठक हैं |
अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।
मुस०– किसी मुसलमान के लिये इसमें बड़ी शरम की बात नहीं हो सकती कि वह किसी को महज दौलत या हुकूमत की बदौलत अपना इमाम समझे। इमाम के लिये सबसे बड़े शर्त क्या है? इस्लाम का सच्चा पैरो होना। इस्लाम की दौलत को हमेशा हक़ीर समझा है। वह इस्लाम की मौत का दिन होगा, जब यह दौलत के सामने सिर झुकाएगा। खुदा हमको और आपको वह दिन देखने के लिए जिंदा न रखे। हमारा दुनिया से मिट जाना इससे कहीं अच्छा है। तुम्हारा फर्ज है कि बैयत लेने से पहले तहकीक कर लो, जिसे तुम खलीफ़ा बना रहे हो, वह रसूल की हिदायतों पर अमल करता है या नहीं। तहक़ीक करो, वह शराब तो नहीं पीता।
कई आ०– क्या तहक़ीक़ करना तुम्हारा काम है। जांच करों कि तुम्हारा खलीफ़ा जिनाकार तो नहीं?
कई आ०– क्या यजीद जिनाकार है?
मूस०– यह जांच करना तुम्हारा काम है। दर्याफ्त करो कि वह नमाज पढ़ता है, रोजे रखता है, आलिमों की इज्जत करता है, खजाने को बेजा इस्तेमाल तो नहीं करता? अगर इन बातों के लिए जांच किए बगैर तुम महज जागीरों और वसीकों की उम्मीद पर किसी की बैयत कबूल करते हो, तुम तो कयामत के रोज खुदा के सामने शर्मिंदा होंगे। जब वह पूछेगा कि तुमने इंतखाब के हक का क्यों बेजा इस्तेमाल किया, जो तुम कैसे क्या जवाब दोगे? जब रसूल तुम्हारा दामन पकड़कर पूछेंगे कि तुमने उसकी अमानत को, जो मैंने तुम्हें दी थी, क्यों मिटा दिया उन्हें कौन-सा मुंह दिखाओगे?
कई आ०– हमें जियाद ने धोखा दिया। हम यजीद की बैयत से इनकार करते है।
मुस०– पहले खूब जांच लो। मैं किसी पर इलजाम नहीं लगाता। कौन खड़ा हो कर कह सकता है कि यजीद इन बुराइयों से पाक है।
|