लोगों की राय

उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


मुंशीजी चले गये, तो यशोदानन्दन बोले–अब आपका क्या काम करने का इरादा है?

चक्रधर–अभी तो कुछ निश्चय नहीं किया है। हाँ, यह इरादा है कि कुछ दिनों आज़ाद रहकर सेवा-कार्य करूँ।

यशोदा०–इससे बढ़कर क्या हो सकता है! आप जितने उत्साह से समिति को चला रहे हैं, उसकी तारीफ़ नहीं की जा सकती। आप जैसे उत्साही युवकों का ऊँचे आदर्शों के साथ सेवा-क्षेत्र में आना जाति  के लिए सौभाग्य की बात है। आपके इन्हीं गुणों ने मुझे आपकी ओर खींचा है। यह तो आपको मालूम ही होगा कि मैं किस इरादे से आया हूँ। अगर मुझे धन या ज़ायदाद की परवाह होती, तो यहाँ न आता! मेरी दृष्टि से चरित्र का जो मूल्य है, वह और किसी वस्तु का नहीं।

चक्रधर ने आँखें नीची करके कहा–लेकिन मैं तो अभी गृहस्थी के बन्धन में नहीं पड़ना चाहता। मेरा विचार है कि गृहस्थी में फँसकर कोई तन-मन से सेवाकार्य नहीं कर सकता।

यशोदा०–ऐसी बात तो नहीं। इस वक़्त भी जितने आदमी सेवा-कार्य कर रहे हैं, वे प्रायः सभी बाल-बच्चों वाले आदमी हैं।

चक्रधर–इसी से तो सेवा-कार्य इतना शिथिल है!

यशोदा०–मैं समझता हूँ कि यदि स्त्री और पुरुष के विचार और आदर्श एक से हों, तो पुरुष के कामों में बाधक होने के बदले स्त्री सहायक हो सकती है। मेरी पुत्री का स्वभाव, विचार, सिद्धान्त सभी आपसे मिलते हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि आप दोनों एक साथ रहकर सुखी रहोगे। उसे कपड़े का शौक नहीं, गहने का शौक़ नहीं, अपनी हैसियत को बढ़ाकर दिखाने की धुन नहीं। आपके साथ वह मोटे-से-मोटे वस्त्र और मोटे-से-मोटे भोजन में सन्तुष्ट रहेगी। अगर आप इसे अत्युक्ति न समझें, तो मैं यहाँ तक कह सकता हूँ कि ईश्वर ने आपको उसके लिए बनाया है और उसको आपके लिए। सेवा कार्य में वह हमेशा आपसे एक कदम आगे रहेगी। अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू, संस्कृत पढ़ी हुई है, घर के कामों में इतनी कुशल है कि मैं नहीं समझता, उसके बिना मेरी गृहस्थी कैसे चलेगी? मेरी दो बहुएँ हैं, लड़की की माँ हैं, किन्तु सब-की-सब फूहड; किसी में भी वह तमीज़ नहीं। रही शक्ल-सूरत, वह भी आपको इस तस्वीर से मालूम हो जाएगी।

यह कहकर यशोदानन्दन ने कहार से तस्वीर मँगवायी और चक्रधर के सामने रखते हुए बोले–मैं तो इसमें कोई हरज़ नहीं समझता। लड़के को क्या ख़बर है कि मुझे बहू कैसी मिलेगी। स्त्री में कितने गुण हों, लेकिन यदि उसकी सूरत पुरुष को पसन्द न आयी, तो वह उसकी नज़रों से गिर जाती है और उनका दाम्पत्य-जीवन दुःखमय हो जाता है। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि वर और कन्या में दो-चार बार मुलाक़ात भी हो जानी चाहिए। कन्या के लिए तो वह अनिवार्य है। पुरुष को स्त्री पसन्द न आई, तो वह और शादियाँ कर सकता है। स्त्री को पुरुष पसन्द न आया तो उसकी सारी उम्र रोते ही गुज़रेगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book