लोगों की राय

उपन्यास >> मनोरमा (उपन्यास)

मनोरमा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8534
आईएसबीएन :978-1-61301-172

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

274 पाठक हैं

‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।


दूसरे दिन प्रातःकाल मुंशीजी दीवान साहब के मकान पर पहुंचे। दीवान साहब मनोरमा के साथ गंगा-स्नान को गये हुए थे। लौंगी अकेली बैठी हुई थी। मुंशीजी फूले न समाये। ऐसा ही मौका चाहते थे। जाते-ही-जाते विवाह की बात छेड़ दी।

लौंगी को यह सम्बन्ध किसी भी तरह स्वीकार नहीं था। अभी बाचचीत हो ही रही थी कि दीवान साहब स्नान करके लौट आये। लौंगी ने इशारे से उन्हें एकान्त में ले जाकर सलाह की। थोड़ी देर बाद दीवान साहब ने आकर मुंशीजी से कहा– आप राजा साहब से जाकर कह दीजिए कि हमें विवाह करना मंजूर नहीं।

मुंशीजी ने सोचा, अगर राजा साहब से कहे देता हूं कि दीवान साहब ने साफ इनकार कर दिया, तो मेरी किरकिरी होती है। इसलिए आपने जाकर दून हांकनी शुरू की– हुजूर बुढ़िया बला कि चुड़ैल है; हत्थे पर तो आती ही नहीं, इधर भी झुकती है, उधर भी; और दीवान साहब तो निरे मिट्टे के ढेले हैं।

राजा साहब ने अधीर होकर पूछा– आखिर आप तय क्या कर आये?

मुंशी– हुजूर के एकबाल से फतह हुई, मगर दीवान साहब खुद आप से शादी की बातचीत करते झेंपते हैं। आपकी तरफ से बातचीत शुरू हो, तो शायद उन्हें इनकार न हो।

राजा– तो मैं बातचीत शुरू कर देता हूं। आज ही ठाकुर साहब की दावत करूंगा और मनोरमा को भी बुलाऊंगा। आप भी जरा तकलीफ कीजिएगा।

दावत में राजा साहब ने मौका पाकर मनोरमा पर अपनी अभिलाषा प्रकट की। पहले तो वह सहमी-सी खड़ी रही, फिर बोली– पिताजी से तो अभी आपकी बातें नहीं हुईं।

राजा– अभी तो नहीं, मनोरमा! अवसर पाते ही करूंगा, पर कहीं उन्होंने इनकार कर दिया तो?

मनोरमा– मेरे भाग्य का निर्णय वही कर सकते हैं। मैं उनका अधिकार नहीं छीनूंगी।

दोनों आदमी बरामदे में पहुंचे, तो मुंशीजी और दीवान साहब खड़े थे मुंशीजी ने राजा साहब से कहा– हुजूर को मुबारकबाद देता हूं।

दीवान– मुंशीजी…

मुंशी– हुजूर, आज जलसा होना चाहिए। (मनोरमा से) महारानी आपका सोहाग सदा सलामत रहे।

दीवान– जरा मुझे सोच…

मुंशी– जनाब, शुभ काम में सोच-विचार कैसा। भगवान जोड़ी सलामत रखें!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book