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मनोरमा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8534
आईएसबीएन :978-1-61301-172

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‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।


एक दिन चक्रधर मोटर पर हवा खाने निकले। गरमी के दिन थे। जी बेचैन था? हवा लगी, तो देहात की तरफ जाने का जी चाहा। बढ़ते ही गये, यहां तक कि अंधेरा हो गया। शोफर को साथ न लिया था। ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते थे, सड़क खराब आती जाती थी। सहसा उन्हें रास्ते में एक बड़ा सांड़ दिखायी दिया। उन्होंने बहुत शोर मचाया, पर सांड़ न हटा। जब समीप आने पर भी सांड़, राह में खड़ा ही रहा तो उन्होंने कतराकर निकल जाना चाहा; पर सांड़ सिर झुकायें फों-फों करता फिर सामने आ खड़ा हुआ। चक्रधर छड़ी हाथ में लेकर उतरे की उसे भगा दें, पर वह भागने के बदले उनके पीछे दौड़ा। कुशल यह हुई कि सड़क के किनारे एक पेड़ मिल गया। जी छोड़कर भागे और छड़ी फेंक, पेड़ की एक शाखा पकड़कर लटक गया। साँड़ एक मिनट तक को पेड़ से टक्कर लेता रहा; पर जब चक्रधर न मिले, तो वह मोटर के पास लौट गया और उसे सींगों से पीछे को ठेलते हुए दौड़ा। कुछ दूर के बाद मोटर सड़क से हटकर एक वृक्ष से टकरा गयी। अब सांड़ पूंछ उठा-उठाकर कितना ही जोर लगाता है, पीछे हट-हटकर उसमें टक्करें मारता है, पर वह जगह से नहीं हिलती। तब उसने बगल में जाकर इतनी जोर से टक्कर लगायी कि मोटर उलट गयी। फिर भी सांड़ ने उसका पिंड न छोड़ा। कभी उसके पहियों से टक्कर लेता, कभी पीछे की तरफ जोर लगाता। मोटर के पहिये फट गये, कई पुरजे टूट गये; पर सांड़ बराबर उस पर आघात किये जाता था।

सांड़ ने जब देखा कि शत्रु की धज्जियां उड़ गयीं और अब वह शायद फिर न उठे, तो डकारता हुआ एक तरफ को चला गया। तब चक्रधर नीचे उतरे और मोटर के समीप जाकर देखा तो वह उलटी पड़ी हुई थी। जब तक सीधी न हो जाय, यह पता कैसे चले कि क्या-क्या चीजें टूट गयी हैं और अब वह चलने योग्य है या नहीं। अकेले मोटर को सीधी करना एक आदमी का काम न था। पूर्व की ओर थोड़ी ही दूर पर एक गांव था। चक्रधर उसी तरफ चले। वह बहुत छोटा-सा ‘पुरवा’ था। किसान लोग अभी थोड़ी ही देर पहले ऊख की सिंचाई करके आये थे। कोई बैलों को सानी-पानी दे रहा था, कोई खाने जा रहा है, कोई गाय दुह रहा था सहसा चक्रधर ने जाकर पूछा-यह कौन गांव है?

एक आदमी ने जवाब दिया-भैंसौर।

चक्रधर– किसका गाँव है?

किसान-महाराज का। कहाँ से आते हो?

चक्रधर– हम महाराज ही के यहाँ से आते हैं। वह बदमाश साँड़ किसका है, जो इस वक्त सड़क पर घूमा करता है?

किसान-यह तो नहीं जानते साहब; पर उसके मारे नाकोदम है।

चक्रधर ने सांड़ के आक्रमण का जिक्र करके कहा–  तुम लोग मेरे साथ चलकर मोटर को उठा दो।

इस पर दूसरा किसान अपने द्वारे से बोला-सरकार, भला रात को मोटर उठाकर क्या कीजिएगा? वह चलने लायक तो होगी नहीं।

चक्रधर– तो तुम लोगों को उसे ठेलकर ले चलना पड़ेगा।

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