उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास) निर्मला (उपन्यास)प्रेमचन्द
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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…
दोनों लड़कों में किसी विषय पर विवाद उठ खड़ा हुआ, और कृष्णा उधर फैसला करने चली गई तो निर्मला ने माता से कहा–इस विवाह की बात सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। यह कैसे हुआ, अम्मा?
माता-यहाँ जो सुनता है, दाँतों तले उँगली दबाता है। जिन लोगों ने पक्की की कराई बात फेर दी, और केवल थोड़े से रुपये के लोभ से, वे अब बिना कुछ लिए कैसे विवाह करने पर तैयार हो गये, समझ में नहीं आता। उन्होंने खुद ही पत्र भेजा। मैंने साफ लिख दिया कि मेरे पास देने-लेने के लिए कुछ नहीं है, कुश-कन्या ही से आपकी सेवा कर सकती हूँ।
निर्मला–इसका कुछ जवाब नहीं दिया?
माता-शास्त्रीजी पत्र लेकर गये थे। वह तो यही कहते थे कि अब मुंशीजी कुछ लेने के इच्छुक नहीं हैं। अपनी पहली वादा-खिलाफी पर कुछ लज्जित भी हैं। मुंशीजी से तो इतनी उदारता की आशा न थी, मगर सुनती हूँ, उनके बड़े पुत्र बहुत सज्जन आदमी हैं। उन्होंने कह सुनकर बाप को राजी किया है।
निर्मला–पहले तो वह महाशय भी थैली चाहते थे न?
माता-हाँ अब तो शास्त्रीजी कहते थे कि दहेज के नाम से चिढ़ते हैं। सुना है, यहाँ पर विवाह न करने पर पछताते भी थे। रुपयों के लिए बात छोड़ी थी, और रुपये खूब पाये स्त्री पसन्द नहीं।
निर्मला के मन में उस पुरुष को देखने की प्रबल उत्कंठा हुई, जो उसकी अवहेलना करके उसकी बहिन का उद्धार करना चाहता है। प्रायश्चित सही, लेकिन कितने ऐसे प्राणी हैं, जो इस तरह प्रायश्चित करने को तैयार हैं? उनसे बातें करने के लिए, नम्र शब्दों से उनका तिरस्कार करने के लिए, अपनी अनुपम छवि दिखाकर उन्हें और भी जलाने के लिए निर्मला का हृदय अधीर हो उठा। रात को दोनों बहिनें एक ही कमरे में सोईं।
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