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निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556
आईएसबीएन :978-1-61301-175

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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


कृष्णा–हां, आई तो थी, लाऊं, देखोगी?

एक क्षण में कृष्णा ने तस्वीर लाकर निर्मला के हाथ में रख दी।

निर्मला ने मुस्कराकर कहा–तू बड़ी भाग्यवान् है।

कृष्णा–अम्माजी ने भी बहुत पसन्द किया।

निर्मला–तुझे पसन्द है कि नहीं, सो कह, दूसरों की बात न चला।

कृष्णा–(लजाती हुई) शक्ल-सूरत तो बुरी नहीं है, स्वभाव का हाल ईश्वर जाने। शास्त्रीजी तो कहते थे, ऐसे सुशील और चरित्रवान् युवक कम होंगे।

निर्मला–यहां से तेरी तस्वीर भी गई थी?

कृष्णा–गई तो थी, शास्त्रीजी ही तो ले गए थे।

निर्मला–उन्हें पसन्द आई?

कृष्णा–अब किसी के मन की बात मैं क्या जानूं? शास्त्री जी कहते थे, बहुत खुश हुए थे।

निर्मला–अच्छा, बता, तुझे क्या उपहार दूं? अभी से बता दे, जिससे बनवा रखूं।

कृष्णा–जो तुम्हारा जी चाहे, देना। उन्हें पुस्तकों से बहुत प्रेम है। अच्छी-अच्छी पुस्तकें मंगवा देना।

निर्मला–उनके लिए नहीं पूछती तेरे लिए पूछती हूं।

कृष्णा–अपने ही लिये तो मैं कह रही हूं।

निर्मला–(तस्वीर की तरफ देखती हुई) कपड़े सब खद्दर के मालूम होते हैं।

कृष्णा–हां, खद्दर के बड़े प्रेमी हैं। सुनती हूं कि पीठ पर खद्दर लाद कर देहातों में बेचने जाया करते हैं। व्याख्यान देने में भी चतुर हैं।

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