उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास) निर्मला (उपन्यास)प्रेमचन्द
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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…
सुधा–मैंने सुना है, इसीलिए चेताये देती हूं। चार बातें गम खाकर रहना होगा।
कृष्णा–मेरी झगड़ने की आदत नहीं। जब मेरी तरफ से कोई शिकायत ही न पायेंगी तो क्या अनायास ही बिगड़ेगी!
सुधा– हां, सुना तो ऐसा ही है। झूठ-मूठ लड़ा करती है।
कृष्णा–मैं तो सौबात की एक बात जानती हूं, नम्रता पत्थर को भी मोम कर देती है।
सहसा शोर मचा-बारात आ रही है। दोनों रमणियां खिड़की के सामने आ बैठीं। एक क्षण में निर्मला भी आ पहुंची।
वर के बड़े भाई को देखने की उसे बड़ी उत्सुकता हो रही थी।
सुधा ने कहा–कैसे पता चलेगा कि बड़े भाई कौन हैं?
निर्मला–शास्त्रीजी से पूछूं, तो मालूम हो। हाथी पर तो कृष्णा के ससुर महाशय हैं। अच्छा डॉक्टर साहब यहां कैसे आ पहुंचे! वह घोड़े पर क्या
हैं, देखती नहीं हो?
सुधा–हां, हैं तो वही।
निर्मला–उन लोगों से मित्रता होगी। कोई सम्बन्ध तो नहीं है।
सुधा–अब भेंट हो तो पूछूं, मुझे तो कुछ नहीं मालूम।
निर्मला–पालकी मे जो महाशय बैठे हुए हैं, वह तो दूल्हा के भाई जैसे नहीं दीखते।
सुधा– बिलकुल नहीं। मालूम होता है, सारी देहे मे पेट-ही-पेट है।
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