| कहानी संग्रह >> पाँच फूल (कहानियाँ) पाँच फूल (कहानियाँ)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ
‘मरने से तो नहीं डरते?'
‘बिल्कुल नहीं—राजपूत हूँ।'
‘बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।’
‘इसका भी डर नहीं।' 
‘अदन जाना पड़ेगा।' 
‘खुशी से जाऊँगा।'
कप्तान ने देखा बालक हाजिर-जवाब है, मनचला, हिम्मत का धनी जवान है, तुरन्त फौज में भरती कर लिया। तीसरे दिन रेजिमेन्ट अदन को रवाना हुआ।
मगर ज्यों-ज्यों जहाज आगे चलता था, जगत का दिल पीछे रहा जाता था। जब तक जमीन का किनारा नजर आता रहा, वह जहाज के डेक पर खड़ा अनुरक्त नेत्रों से उसे देखता रहा। जब वह भूमि-तट जल विलीन हो गया, तो उसने ठंडी सांस ली और मुँह ढाँपकर रोने लगा। आज जीवन में पहली बार उसे प्रियजनों की याद आयी। वह छोटा-सा अपना कस्बा, वह गाँजे की दूकान, वह सैर-सपाटे, वह सुहृद मित्रों के जमघटे आँखों में फिरने लगा। कौन जाने कभी उनसे भेंट होगी या नहीं। एक बार वह इतना बेचैन हुआ कि जी में आया कि पानी में कूद पड़े। 
			
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