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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ



फातिहा

`सरकारी अनाथालय से निकालकर मैं सीधा फौज में भरती किया गया। मेरा शरीर हृष्ट-पुष्ट और वलिष्ट था। साधारण मनुष्यों की अपेक्षा मेरे हाथ-पैर कहीं लम्बे और स्नायु युक्त थे। मेरी लम्बाई पूरी छः फीट नौ इंच थी। पलटन में मैं ‘देव’ नाम से विख्यात था। जब से मैं फौज में भरती हुआ, तब से मेरी किस्मत ने पलटा खाना शुरू किया और मेरे हाथ से कई ऐसे काम हुए जिनसे प्रतिष्ठा के साथ-साथ मेरी आय भी बढ़ती गयी। पटलन का हर एक जवान मुझे जानता था। मेजर सरदार हिम्मतसिंह की कृपा मेरे ऊपर बहुत थी, क्योंकि मैंने एक बार उनकी प्राण रक्षा की थी। इसके अतिरिक्त न जाने क्यों उनको देख हृदय में भक्ति और श्रद्वा का संचार होता था। मैं यही समझता कि यह मेरे पूज्य हैं, और सरदार साहब का भी व्यवहार मेरे साथ स्नेह युक्त और मित्रतापूर्ण था।

मुझे अपने माता पिता का पता नहीं है, और न उनकी कोई स्मृति ही है। कभी-कभी जब मैं इस प्रश्न पर विचार करने बैठता हूँ, तो कुछ धुँधले से दृश्य दिखाई देते हैं। बड़े-बड़े पहाड़ों के बीच में रहता हुआ एक परिवार, और एक स्त्री का मुख, जो शायद मेरी माँ का होगी। पहाड़ों के बीच में तो मेरा पालन-पोषण ही हुआ है। पेशावर से अस्सी मील पूर्व एक ग्राम है, जिसका नाम ‘कुलाहा’ है, वहीं पर एक सरकारी अनाथालय है। इसी में मैं पाला गया। यहाँ से निकलकर सीधा फौज में चला गया। हिमालय की जलवायु से मेरा शरीर बना है, और मैं वैसा ही दीर्घकृत और बर्बर हूँ, जैसे कि सीमाप्रान्त के रहने वाले अफ्रीदी, गिलजई, महसूदी आदि पहाड़ी कबीलों के लोग होते हैं। यदि उनके और मेरे जीवन में कुछ अन्तर है, तो वह सभ्यता का। मैं थोड़ा-बहुत पढ़ लिख लेता हूँ, बातचीत कर लेता हूँ, अदब-कायदा जानता हूँ। छोटे-बड़े का लिहाज कर सकता हूँ, किन्तु मेरी आकृति वैसी ही है, जैसी कि किसी भी सरहदी पुरुष की हो सकती है।

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