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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


यद्यपि मैं सो रहा था लेकिन मेरा ज्ञान जाग रहा था, मुझे ऐसा मालूम हुआ कि कोई स्त्री, जिसकी आकृति तूरया से बहुत कुछ मिलती थी, लेकिन उससे कहीं अधिक भयावनी थी, दीवार फोड़कर भीतर घुस आयी है। उसके हाथ में एक तेज छूरा है, जो लालटेन के प्रकाश में चमक रहा था वह दबे पाँव सतर्क नेत्रों से ताकती हुई धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ रही है। मैं उसे देखकर उठना चाहता हूँ, लेकिन हाथ-पैर मेरे काबू में नहीं है। मानों उनमें जान है ही नहीं। वही स्त्री मेरे पास पहुँच गयी। थोड़ी देर तक मेरी ओर देखा, और फिर अपने छूरे वाले हाथ को ऊपर उठाया। मैं चिल्लाने का उपक्रम करने लगा, लेकिन मेरी घिग्घी बँध गयी। शब्द कण्ठ से फूटा ही नहीं। उसने मेरे दोनों हाथों को अपने घुटने के नीचे दबाया और मेरी छाती पर सवार हो गयी। मैं छटपटाने लगा और मेरी आँख खुल गयी। सचमुच एक काबुली औरत मेरी छाती पर सवार थी। उसके हाथ में छुरा था। और छुरा मारना ही चाहती थी।

मैंने कहा—कौन, तूरया?

यह वास्तव में तूरया ही थी। उसने मुझे बलपूर्वक दबाते हुए कहा—हाँ, मैं तूरया ही हूँ। आज तूने मेरे बाप का खून किया है, उसके बदले में तेरी जान जायगी।

यह कहकर उसने अपना छुरा ऊपर उठाया। इस समय मेरे सामने जीवन और मरण का प्रश्न था। जीवन की लालसा ने मुझमें साहस का संचार किया। मैं मरने के लिए तैयार न था, मेरे अरमान और उमंगें अब भी बाकी थीं। मैंने बलपूर्वक अपना दाहिना हाथ छुड़ाने का प्रयत्न किया और एक ही झटके में मेरा हाथ छूट गया। मैंने अपनी ताकत से तूरया का छूरा वाला हाथ पकड़ लिया। न मालूम क्यों तूरया ने कुछ भी विरोध न किया। वह मेरे हाथ को देखती हुई मेरी छाती से उत्तर आयी। उसकी आँखें पथराई हुई थीं, और वह एकटक मेरे हाथ की ओर देख रही थी।

मैंने हँसकर कहा—तूरया, अब तो पाँसा पलट गया। अब तेरे मरने की पारी है। तेरे बाप को मारा और अब तुझे भी मारता हूँ।

तूरया अब भी एकटक मेरे हाथ की ओर देख रही थी। उसने कुछ भी उत्तर न दिया।

मैंने उसे झँझोड़ते हुए कहा—बोलती क्यों नहीं। अब तो तेरी जान मेरी मुठ्ठी में है।

तूरया का मोह टूटा। उसने बड़े गम्भीर और दृढ़ कण्ठ से कहा—तू मेरा भाई है। तूने अपने बाप को मारा है आज!

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