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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


यह कहकर उसने फिर वही हाथ मुझे दिखलाया। मैं उसका और अपना साँप मिलाने लगा। वास्तव में दोनों साँप हूबहू एक-से थे, बाल-भर भी अन्तर न था। मैं हताश-सा होकर चारपाई पर गिर पड़ा।
तूरया मेरे पास बैठकर स्नेह से मेरे माथे का पसीना पोंछने लगी।

उसने कहा—नाजिर, माँ कहती थी कि तू मरा नहीं, जिंदा है। एक दिन जरूर तू हम लोगों से मिलेगा।
 
तूरया की बात पर मुझे विश्वास हो चला था। न जाने कौन मेरे हृदय में बैठा हुआ कह रहा था कि तूरया जो कहती है, ठीक है। मैंने एक लम्बी साँस लेकर कहा—क्यों तूरया, मैंने जिसे आज मारा है, वह हम लोगों का बाप था!

तूरया के मुँह पर शोक का एक छोटा-सा बादल घिर आया। उसने बड़े ही दुःखपूर्ण स्वर में कहा—हाँ नाजिर, वह अभागा हमारा बाप ही था। कौन जानता था कि वह अपने प्यारे लड़के के हाथों हलाल होगा।

फिर सान्त्वनापूर्ण स्वर में बोली—लेकिन नाजिर, तूने तो अनजान में यह काम किया है। बाप के मरने से मैं बिलकुल अकेली हो गयी थी; लेकिन अब तुझे पाकर मैं बाप के रंज को भूल जाऊँगी। नाजिर, रंज न कर। तुझे क्या मालूम था कि कौन तेरा बाप है और कौन तेरी माँ है! देख, मैं ही तुझे मारने के लिए आई थी, तुझे मार डालती, लेकिन खुदा की मेहरबानी से मैंने अपना खानदानी निशान देख लिया। खुदा की ऐसी ही मरजी थी।

तूरया से मालूम हुआ कि मेरे बाप का नाम हैदर खाँ था, जो अफ्रीदियों के एक गिरोह का सरदार था। मैंने सरदार हिम्मतसिंह के संबंध में तूरया से बातें कीं, तो मालूम हुआ कि तूरया सरदार साहब को प्यार करने लगी थी। वह हमारे बाप से लड़-भिड़कर सरदार साहब से निकाह करने आयी थी, लेकिन वहाँ उनकी स्त्री को पाकर ईर्ष्या और क्रोध में पागल हो गयी, और उसने उनकी स्त्री की हत्या कर डाली! काबुली औरत के भेष में जाकर वह कुछ मजाक करना चाहती थी, लेकिन घटना चक्र उसे दूसरी ही ओर ले गया।

मैंने सरदार साहब की दशा का वर्णन किया। सुनकर वह कुछ सोचती रही और फिर कहा नहीं, वह आदमी झूठा और दगाबाज है। उससे निकाह नहीं करूँगी। लेकिन तेरी खातिर अब सब भूल जाऊँगी। कल उसके बच्चों को ले आना मैं प्यार करूँगी।

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