कहानी संग्रह >> पाँच फूल (कहानियाँ) पाँच फूल (कहानियाँ)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ
सरदार साहब को बिठाकर मैंने विस्तारपूर्वक सब हाल कहा। कहानी सुनकर सरदार साहब ने मुझसे कहा—नाजिर, अब तुम्हें नाजिर ही कहूँगा। तूरया को मैं माँगता हूँ। मैं इससे विवाह करूँगा।
मैंने हँसकर कहा—लेकिन आप हिन्दू हैं, और हम लोग मुसलमान।
सरदार साहब ने हँसकर कहा—पलटनियों की कोई जात-पाँत नहीं है।
तूरया ने उसी समय कहा—लेकिन सरदार साहब, मैं तुमसे विवाह नहीं करूँगी। हाँ, अगर तुम अपने दोनों बच्चों को मेरे पास भेज दो, तो मैं उनकी माँ बन जाऊँगी।
सरदार साहब हँसते हुए विदा हुए।
उसी दिन शाम को हमने सरदार साहब, तूरया और दूसरे पलटनियों के साथ जाकर अपने बाप की लाश दफनाई।
सूरज डूब रहा था। धीरे-धीरे अँधेरा हो रहा था, और हम दोनों तूरया और मैं, अपने बाप की कब्र पर फातिहा पढ़ रहे थे।
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