उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
जब राधा को पता चला कि शर्मिष्ठादेवी का पुत्र, जिससे उसके विवाह का प्रस्ताव था, भी वहाँ बैठा है तो उसने पूछ लिया, ‘‘ये यहाँ क्यों आए हैं?’’
दूसरे ही क्षण उसके क्रोध के आँसू आँखों से ढुलक पड़े और वह वहाँ से लौट आयी। वहाँ से वह सीधे शारदा के कमरे में चली गयी। शारदा ने उसको अपने कमरे में जाते देखा तो अपने बड़े लड़के को, जो इस समय चार वर्ष की आयु का था, कह दिया, ‘‘सुनन्द! देखो बुआ को पूछकर ठण्डा पानी पिलाओ।’’
सुनन्द राधा के साथ ही वहाँ जा पहुँचा। उसने कह दिया, ‘‘अम्माँ कहती है कि ठण्डा पानी पी लो।’’
‘‘ठण्डा पानी?’’
‘‘हाँ, राधा बुआ! पानी लाऊँ?’’
राधा शारदा के इस कथन का अर्थ समझ गयी। शारदा के कहने का अर्थ था कि वह क्रोध छोड़ शान्त हो जाए। अतएव शारदा की खाट पर लेटते हुए उसने कहा, ‘‘सुनन्द! मैं आप ही पी लूँगी। तुम जाओ माँ के पास।’’
सुनन्द गया नहीं। वह वहीं भूमि पर बैठकर खेलने लगा। राधा बहुत देर तक वहाँ लेटी हुई अपने क्रोध करने पर लज्जा अनुभव करती रही। वह अपने को शान्त कर पूर्ण परिस्थिति पर विचार करने लगी थी।
लगभग तीन घण्टे बाद शारदा आयी और कमरे का द्वार भीतर से बन्द कर प्यार से राधा के सिर पर हाथ फेरने लगी। इस पर राधा उठकर उससे गले मिली और फिर रोने लगी।
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