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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘कैथोलिक मतावलम्बी तो बिना पोप की स्वीकृति के तलाक नहीं दे सकते और पोप की स्वीकृति बहुत कठिनाई से प्राप्त होती है। इस कारण आज की अधिकांश कैथोलिक लड़कियां गिरजाघर में विवाह करती ही नहीं। अनेक ऐसी हैं जो कचहरी में भी जाना पसन्द करतीं। कैथोलिकों का प्रयास है कि युवा लड़के लड़कियों को इकट्ठे रहने, खाने-पीने, खेलने-कूदने तथा नाचने की स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए। इसी कारण वे लड़कियों से पृथक् क्लब बना रहे हैं। परन्तु इन क्लबों में सप्ताह में एक दिन रिसेप्शन का दिन होता है और उस दिन सप्ताह की कमी पूरी कर ली जाती है।’’

महेश्वरी ने मुस्कुराते हुए पूछा, ‘‘तो क्या लैसली मदन को छोड़ देगी?’’

‘‘मैं कल और आज उससे मिली नहीं। किन्तु मैं उसको अन्य अमेरिकन लड़कियों में भिन्न नहीं समझती।

‘‘मैं तुमको अपनी बात बताती हूं। मैं ब्राजील के विरजियो नामक स्थान की रहने वाली हूं। मैं आठ-नौ वर्ष की थी कि प्रेम मार्ग की पथिक बन गई। अपने एक स्कूल के साथी से प्रेम-प्रलाप करने लगी। वह देश गरम और तराई वाला है। वहां लड़के-लड़कियों के शरीर छोटी आयु में ही परिपक्व हो जाते हैं। अक्ल तो उस आयु में होती नहीं। मैं जब तेरह वर्ष की हुई थी तो पेट में बच्चा रह गया। मैं उस लड़के के मोहजाल में इतनी फंसी हुई थी कि मैं उसके साथ घर से भाग जाने के लिए तैयार हो गई। घर वालों को जब मेरी गर्भस्थिति का ज्ञान हुआ तो उन्होंने मुझे बहुत पीटा और उस पीड़ा से मैं बीमार हो गई और गर्भपात हो गया।

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