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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘इन तत्त्वदर्शियों के मिथ्या वाग्जाल में फंसे युवक-युवतियों उन मक्खियों के तुल्य हैं जो मकड़ी के जाल फंस गई हों। मैं लड़कों को घृणा के योग्य मानती हूं और लड़कियों को दया के योग्य। लड़के तो रस लेकर उड़ जाया करते हैं और लड़कियां उसका दण्ड भुगतने के लिए रह जाती हैं। इस समय अमेरिका में सहस्त्रों अविवाहित संयोग के बच्चे प्रतिमास उत्पन्न होते हैं, जिनको उनकी माताएं सड़कों के किनारे, अद्यानों में तथा अस्पतालों के दरवाजों पर छोड़ जाती हैं। उनके पिता तो, भगवान् जाने कहां-कहां और किन-किन रसों का स्वाद ले रहे होते हैं।’’

अमेरिका के सामान उन्नत देश में इतनी पतनावस्था का ज्ञान प्राप्त कर महेश्वरी तो कांप उठी। वह गम्भीर विचारों से मग्न चाय पीती रही। चाय समाप्त होने पर वह उठ पड़ी और बोली, ‘‘मिस्टर स्वरूप अकेले होंगे। मुझे उनके पास जाना चाहिये।’’

‘‘मैं भी चल रही हूं। आज तो मिसेज साहनी के साथ भोजन का निमन्त्रण है। मैं उस समय तक वहीं रहूंगी।’’

लौटते हुए इलियट ने कहा, ‘‘मैं अपने विचारों से इस संसार में स्वयं को अकेली पाती हूं। इसी कारण मैं लड़के-लड़कियों की संगति ढूंढती रहती हूं। परन्तु मैं किसी को भी अपने विचारों का साथी नहीं बना पाती। मैं जब भी किसी लड़की को लड़कों के प्रति अपनी घृणा की बात बताती हूं तो वे मुझे ‘बूवी’ कहती हैं।’’

‘‘यह ‘बूवी’ क्या होता है?’’

‘‘ ‘बूवी’ सैक्सलेस व्यक्ति को कहते हैं।’’

महेश्वरी हंस पड़ी। इलियट ने मदन का मिस फ्रिट्ज के प्रति व्यवहार का वृत्तान्त बता दिया और बताया कि मिस फ्रिट्ज भी मदन को बूवी ही कहती थी। यह यहां का रिवाज-सा हो गया है।

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