लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


निश्चित समय पर मैच हुआ और उसमें हुई महेश्वरी की विजय ने मदन के मन से, रहे-सहे संशय को भी दूर कर दिया। टैनिस खेलने के परिधान में वह बहुत ही आकर्षक प्रतीत होती थी। मदन ने मन में निश्चय-सा कर लिया था कि वह महेश्वरी से विवाह करेगा। इसी समय उसके मन में सन्देह उठा कि क्या वह दो वर्ष तक उसकी प्रतीक्षा करेगी।

कोठी में लौट कर महेश्वरी ने चाय मंगवाई। मदनस्वरूप भी अब बात को अन्तिम रूप देने के लिए उससे निश्चय करना चाहता था। जब दोनों ड्राइंग रूम में बैठ गये तो मदन ने कहा, ‘‘आज की विजय पर तुन्हें बधाई।’’

‘‘धन्यवाद अब बताइये कि आपकी और मेरी सांझी बधाई कब होगी?’’

‘‘मैं तो आज ही से स्वयं को भाग्यशाली समझने लगा हूं।’’

‘‘यह तो ठीक है, परन्तु इसका निर्णय तो हमारे माता-पिता ही करेंगे?’’

‘‘तो क्या यही तुम्हारी प्रगतिशीलता है?’’

‘‘परन्तु इसमें रूढ़िवादिता भी कहां से आ गई? मैंने आपको उत्तर दे दिया है। आपने पूछा था कि आप स्वयं को भाग्यशाली मानने लगे हैं। मैंने उसको स्वीकार कर लिया है। अब शेष तो माता-पिता ही तय करेंगे।’’

‘‘मैं केवल मुख से ही नही सुनना चाहता था, मैं तो इसका क्रियात्मक रूप देखना चाहता था।’’

‘‘से?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book